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बहुत बडा खुलासा: उत्तराखंड में लगती है शिक्षकों की बोली...लाखों में फिक्स होता है रेट !

Apr 20 2017 11:49AM, Writer:मीत

हर उत्तराखंडी के लिए हम एक बड़ी खबर लेकर आए हैं। ये खबर हर उस बेरोजगार के लिए एक नासूर की तरह है, जो नौकरी के लिए दर दर भटकता फिरता है। उत्तराखंड के अशासकीय स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्तियों में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है। खबर तो यहां तक है कि शिक्षक बनने के लिए 10 से 15 लाख रुपये तक की बोली लगती है। इसके अलावा प्रिंसिपल बनने के लिए 25 लाख रुपये तक की बोली लगती है। नौकरी में रुपयों की बोली से पात्र अभ्यर्थियों के साथ धोखा हुआ और अपात्र अभ्यर्थी को नौकरी मिल गई। एक बड़े हिंदी अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा विभाग में नौकरी के लिए कई लोग ना सिर्फ फर्जी प्रमाण पत्र बनवाते हैं । बल्कि इसके आधार पर अभ्यर्थी नौकरी भी पा जाते हैं। इसके साथ ही इस धंधे में पैसों का लेनदेन भी खूब चलता है। बताया गया है कि पैसा ना देने वाले अभ्यर्थियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया।

विभाग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक गदरपुर ऊधमसिंह नगर के एक स्कूल में टीचरों की भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए थे। इसके बाद अभ्यर्थियों को ना बुलाकर गुपचुप तरीके से चहेतों को ही नियुक्ति दे दी गई। इसके साथ ही दूसरी तरफ देहरादून में कार्यरत शिक्षा विभाग के एक बाबू पर आरोप है कि उसने 2008 से 2012 तक फर्जी मार्कशीट बनवाकर कई शिक्षकों की नौकरी लगाई है। आरोप ये है ये व्यक्ति नौकरी के लिए 70 फीसदी धनराशि पहले और 30 फीसदी नौकरी लगने के बाद लेता रहा है। इसने अशासकीय स्कूलों में टीचरों को नौकरी दिलाई है। बताया जा रहा है कि ये फर्जी अंक पत्र बनाने से लेकर नौकरी दिलाने तक का ठेका लेता रहा है। अखबार में छपी रिपोर्ट कहती है कि ऋषिकेश देहरादून के रहने वाले एक व्यक्ति ने शिक्षा महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा से इस पूरे मामले को लेकर लिखित में शिकायत की है।

अब आपको एक केस और बताते हैं। दून के एक स्कूल में व्यवस्थापक की बेटी अशासकीय स्कूल की हेडमास्टर बनी है। खबर है कि वो पिछले एक साल से स्कूल छोड़कर अमेरिका में रह रही है। इसके बावजूद विभाग की ओर से हर महीने उसका वेतन जारी हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों के संज्ञान में ये पूरा मामला है, इसके बावजूद भी वो इस मामले को दबाए हुए हैं। टीचरों की नियुक्तियों में फर्जीवाड़े पर अब तक दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई । अब सवाल ये है कि आखिर इस फर्जीवाड़े पर रोक कैसे लगे जब विभाग ही मामले की लीपापोती में जुटा है। सवाल ये भी आखिर क्या अब तक सरकार की निगाह ऐसे फर्जी वाडों पर नहीं गई ? आखिर क्यों बेरोजगारों की छाती पर मूंग दली जाती है ? अब इस बात का जवाब सरकारों को देना पड़ेगा।


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