ऐसा नहीं था हमारा उत्तराखंड...ये किसकी नजर लग गई है देवभूमि को ?
May 9 2017 3:33PM, Writer:मीत
उत्तराखंड की युवाओं को ये क्या हो गया है। युवा पीढ़ी इस वक्त नशे की गिरफ्त में है। स्मैक, चरस, गांजा के अलावा नए-नए किस्म का नशा युवाओं को अपनी लत का शिकार बना रहा है। ताजा खबर चंपावल से है। जहां चरस तस्करी के आरोप में एसटीएफ ने तीन युवकों को गिरफ्तार किया है। उनके पास से आठ किलो दो सौ ग्राम चरस बरामद की गई है। तीनों आरोपी चरस को दिल्ली ले जा रहे हैं। अंतरराज्यीय गैंग से जुड़े तीनों आरोपी जितेंद्र सिंह और संजय कुमार निवासी चौमेल तथा जितेंद्र पाल निवासी विष्णुपुरी कालोनी टनकपुर को मायावती तिराहे से गिरफ्तार किया गया। उसके पास से तस्करी में इस्तेमाल की जा रही कार को सीज कर दिया गया है। चरस की कीमत पांच लाख बताई जा रही है। तीनों आरोपियों से एसटीएफ की टीम पूछताछ कर रही है। इससे पहले हमने आपको बताया था कि नैनीताल जिले में भी पिछले कुछ महीनों से नशाखोरी की वारदातें अचानक बढ़ गई है।
उत्तराखंड का हल्द्वानी शहर, नशे के कारोबार का अड्डा बन चुका है, नशे के सौदागर यहां युवाओं को अपने चंगुल में फांस कर उन्हें बर्बाद कर रहे हैं, नशे के लत के शिकार अमीर गरीब युवा हो रहे हैं, कोई स्मेक, कोई चरस तो कोई गांजे की गिरफ्त में है, यही नहीं नई पीढ़ी के युवाओं का नशा नया और जानलेवा भी है। दरअसल नशे का रूप भी बदल रहा है, मेडिकल शॉप्स, स्टेशनरी शॉप्स, साइकिल शॉप्स से भी युवा नशा खरीद रहे हैं। जिसे रोक पाना पुलिस के बस की बात भी नहीं है। ये खुद पुलिस भी मान रही है। पिछले दो महीनों में नैनीताल पुलिस ने 17 मामले एनडीपीएस के दर्ज किए हैं। 15 किलो चरस पकड़ी, 52 ग्राम स्मैक पकड़ी, बड़ी मात्रा में नशे की गोलियां पकड़ी हैं। दो दर्जन नशे के कारोबारी जेल भेजे गए हैं। हालांकि जिस तरह का नशे का कारोबार तेज़ी से फैल रहा है। उसकी तुलना में ये बरामदगी बेहद कम मानी जा रही है। पुलिस अधिकारी कहते है कि नशे के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
नैनीताल जिले में नशे के जाल पहले पिछड़ी बस्तियों तक ही सीमित था, जो अब पॉश कॉलोनियों तक फैल गया है। आज नशे की समस्या उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्याओं में एक हो गई है। यहां बच्चे तक नशे के आदी होते देखे गये हैं। सरकारों की मिलीभगत से शराब माफिया हर कस्बे में शराब की दुकानें खोलने पर आमादा हैं। बस्तियों में पानी पहुंचे या नहीं, लेकिन शराब को हर गांव, गली-मोहल्ले तक पहुंचाने में शराब माफिया बराबर सक्रिय दिखता है। अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर देवभूमि के युवा कब सुधरेंगे ? बड़े बड़े वादे करने वाली सरकारें आखिर कब बड़ा एक्शन लेंगी ? क्या उत्तराखंड का युवा अंधकारमय भविष्य की तरफ आगे बढ़ रहा है ? आखिर क्यो एक बड़ा ऑपरेशन चलाकर युवाओं को इस लत से आजादी नहीं दी जा रही ? आखिर कब नशे के सौदागरों पर लगाम कसी जाएगी ? आखिर कब उत्तराखंड के युवाओं को सही रास्ते पर ले जाया जाएगा ? सवाल तो कई हैं, लेकिन लग रहा है कि इन यक्ष प्रश्नों का जवाब देने के लिए कोई युधिष्ठिर नहीं है।