image: The story of raja medinishah

उत्तराखंड के इस सम्राट के लिए गंगा ने बदली थी धारा…जानिए क्यों ?.. अपनी संस्कृति से जुड़िए

May 24 2017 9:30PM, Writer:मीत

रानी कर्णावती की कहानी तो आपने सुनी। अपने पिछले अंक में हमने आपको वो कहानी बताई थी। आज हम उनके पोते मेदिनीशाह के बारे में आपको एक रोचक जानकारी दे रहे हैं। पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदिनीशाह 1667 के आसपास राजा बने थे। माना जाता है कि मेदिनीशाह की औरंगजेब से मित्रता हो गयी थी और इसलिए उन्हें अपनी दादी या पिता की तरह मुगलों से जंग नहीं लड़नी पड़ी थी। मेदिनीशाह को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि कहा जाता है कि एक बार उनके लिये गंगा नदी ने भी अपनी धारा बदल दी थी। इसमें कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। गढ़वाल के राजा को तब बदरीनाथ का अवतार भी माना जाता था और हो सकता हो कि राजा ने लोगों के सामने खुद को 'भगवान' साबित करने और अपने खिलाफ किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिये के लिये ये किस्सा गढ़कर फैलाया हो। ये भी हो सकता है कि राजा के पास तब ऐसे कुछ कुशल कारीगर रहे हों जिन्होंने रातों रात गंगा की धारा बदल दी हो।

वास्तव में तब क्या हुआ था इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है। ये महज एक किस्सा है जिसके बारे में कहा जाता है कि मेदिनीशाह के राज्यकाल के दौरान इस तरह की घटना घटी थी। हरिद्वार में जब कुंभ मेला लगता था तो गढ़वाल का राजा हरी जी के कुंड में सबसे पहले स्नान करता था। उसके बाद ही बाकी राजाओं का नंबर आता था। जिस साल की ये घटना हुई, उस साल कहा जाता है कि कई राजा हरिद्वार पहुंचे थे। उन सभी ने सभा करके तय किया कि पर्व दिन पर सबसे पहले गढ़वाल का राजा स्नान नहीं करेगा। सभी राजा इस पर सहमत हो गये। यहां तक कि गढ़वाल के राजा को किसी तरह की जबर्दस्ती करने पर जंग के लिये तैयार रहने की चेतावनी भी दी गयी। बाकी सभी राजा एकजुट थे और गढ़वाल का राजा अलग थलग पड़ गया। मेदिनीशाह ने कहा कि ये पुण्य क्षेत्र है, यहां कुंभ मेला जैसा महापर्व का आयोजन हो रहा है इसलिए रक्तपात सही नहीं है। दूसरे राजा ही पहले स्नान कर सकते हैं।

उन्होंने अन्य राजाओं के पास जो संदेश भेजा था उसमें आखिरी पंक्ति ये भी जोड़ी थी कि, यदि वास्तव में गंगा मेरी है और उसे मेरा मान सम्मान रखना होगा तो वो स्वयं मेरे पास आएगी। बाकी राजा इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाये। वो अगले दिन गढ़वाल के राजा से पहले कुंड में स्नान करने की तैयारियों में जुट गये। कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा ने चंडी देवी के नीचे स्थित मैदान पर अपना डेरा डाला और मां गंगा की पूजा में लीन हो गये। बाकी राजा सुबह हरि जी के कुंड यानि हरि की पैड़ी में स्नान के लिये पहुंचे लेकिन वहां जाकर देखते हैं कि पानी ही नहीं है। मछलियां तड़प रही थी। गंगा ने अपना मार्ग बदल दिया था। वो गढ़वाल के राजा के डेरे के पास से बह रही थी। राजा मेदिनीशाह ने गंगा पूजन करने के बाद स्नान किया। जब अन्य राजाओं को पता चला तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्हें भी लगा कि गढ़वाल का राजा वास्तव में भगवान बदरीनाथ का अवतार हैं। ये कहानी आपको पसंद आए तो अपने दोस्तों के बीच शेयर जरूर कीजिएगा।


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