देवभूमि के द्वितीय केदार, जहां महादेव के लिए मर्यादा पुरुषोतम राम ने किया तप
Jun 13 2017 9:22PM, Writer:मीत
उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर अन्य केदारों से अलग ही महत्व रखता है। ये मंदिर विशेष महत्ता इसलिए रखता है क्योंकि ये स्थान भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि यहां भगवान रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे। पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ की स्थापना कैसे हुई, ये बात लगभग किसी शिवभक्त से छिपी नहीं। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद बेहद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वो महर्षि व्यास के पास गए। महर्षि व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं। व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन भगवान शंकर महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रुप धारण कर वहां से निकल गए।
लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए। कहते हैं कि तुंगनाथ में 'बाहु' यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। ये मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। पंचकेदारों में ये मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और चोपता से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। यहां आपको असीम शांति का अनुभव होता है। उत्तराखंड की प्यारी और खूबसूरत वादियों के बीच ये जगह आपके लिए किसी अतुलनीय और दिव्य जगह से कम नहीं है। इसके साथ ही यहां के बुग्याल इस कदर खूबसूरत हैं कि लोग इस जगह को मिनी स्विटजरलैंड कहते हैं। इतनी खूबसूरती से भरे वातावरण में पहुंचकर आप खुद को धन्य समझेंगे।
पुराणों में कहा गया है कि भगवान राम भगवान शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे। कहते हैं कि लंकापति रावण का वध करने के बाद रामचंद्र ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था। भगवान रामचंद्र ने यहां कुछ वक्त बिताया था। कुल मिलाकर ये कहानी भगवान राम से भी जुड़ी है। उत्तराखंड की धरती में भगवान राम ने इसी जगह पर शांति प्राप्त की थी। चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला पहुंचकर आप विराट हिमालय की सुदंर छटा का आनंद ले सकते हैं। सर्दियों के वक्त बर्फ पड़ने की वजह से भगवान शंकर को यहां से मक्कूमठ लाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण पूरे ढोल, नगाड़ों के साथ भगवान शिव को ले जाते हैं और गर्मियों में वापस रखते हैं। ब्रिटिश शासनकाल में कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है।