दिव्य देवभूमि : शिव-पार्वती के विवाह का सबूत है ये मंदिर, यहां बेहद खास है अखंड ज्योति
Jul 2 2017 8:02AM, Writer:अजित
आज हम आपको उस मंदिर में लेकर चलेंगे जहां भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। ये मंदिर है रुद्रप्रयाग के त्रियुगीनारायण में है, इस मंदिर में एक खास बात और है, जिस हवन कुण्ड की अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे, वो अभी भी प्रज्वलित है। ऐसा माना जाता है कि आधार पर इस हवन कुण्ड की राख, भक्तों के वैवाहिक जीवन को सुखी रहने का आशीर्वाद देती है। मंदिर में जल रही अखंड अग्निज्योत को भगवान शिव और पार्वती के विवाह वेदी की अग्नि ही माना जाता है। यह अग्नि त्रेतायुग से जल रही है। यही वजह है कि हर वर्ष यहां सैकड़ों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। त्रियुगीनारायण मंदिर आज भी श्रद्धा और भक्ति के अटूट आस्था का केंद्र है। रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर सोनप्रयाग से 12 किमी मोटरमार्ग का सफर तय कर यहां पहुंचा जाता है।
मंदिर इलाके के चप्पे-चप्पे पर शिव और पार्वती की शादी के साक्ष्य स्पष्ट नजर आते है। यहां पर आज भी अग्नि कुंड के साथ अखण्ड ज्योति, धर्म शिला मौजूद है। शादी के दौरान देवताओं ने विभिन्न शक्तियों से वेदी में विवाह अग्नि पैदा की थी, जिसे धंनजय नाम दिया गया। यह अग्नि आज भी निरंतर जल रही है। त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है। विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं।
इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है। इस अग्नि की राख को आज भी लोग अपने घरों में ले जाते हैं, जिसे शुभ माना जाता है। अगर आपको वैवाहिक जीवन में परेशानियां हैं तो इस मंदिर में आकर आपकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। यहां हवन कुंड की राख आपकी सारी परेशानियां दूर कर देंगी। मंदिर में प्रसाद रूप में लकड़ियां भी चढ़ाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से बलि 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर रोक दिया जिससे कि बलि का यज्ञ भंग हो गया। यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं। आप भी एक बार जरूर इस स्थान पर पहुंचकर खुद को धन्य महसूस करें।