image: Story of tapkeshwar mahadev

देवभूमि में यहां पैदा हुआ था महाभारत का ‘बाहुबली’, दूध की हर बूंद पर लिखा ‘महादेव’ !

Jul 11 2017 8:28AM, Writer:देवाशीष

उत्तराखंड की कहानियां आदि-अनादि काल से चली आ रही हैं। इस भूमि में आपको कदम कदम पर ऐसे देवालय मिलेंगे, जहां के चमत्कार की एक अलग ही कहानी होगी। ये तो वो वजह है कि उ्तराखंड के देवों की भूमि कहा जाता है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। इस मंदिर के लिए कहा जाता है कि एक बार के दर्शन से ही यहां सातों जन्मों के पाप कट जाते हैं। देहरादून में स्थित एक मंदिर महाभारत काल से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि यहां महाभारत के सबसे पराक्रमी योद्धा को खुद भगवान शिव ने धनुष विद्या सिखाई थी। देहरादून से सात किलोमीटर दूर स्थित है टपकेश्वर मंदिर। हर साल यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां बड़ी संख्या में शिवभक्त दर्शन करने आते हैं। इस बार आप भी इस मंदिर के दर्सन के लिए जाइए। प्रकृति की गोद में बसा ये मंदिर अलौकिक है। अब आप इसका पौराणिक महत्व भी जानिए।

खासकर इस बार सावन पर भक्तों का यहां सैलाब उमड़ रहा है। मान्यता है कि भगवान शंकर आदिकाल में देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न हुए थे। भगवान शिव ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इसके साथ ही यहां भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण किया गया था। इस तपस्थली को ऋषि-मुनियों ने अपना वास बनाया था। बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने भगवान शंकर के लिए यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि ये मंदिर महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि आचार्य द्रोण को इसी स्थान पर भगवान शंकर की कृपा प्राप्त हुई। उन्हें महादेव ने अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या का ज्ञान खुद यहीं पर दिया था। ऐसी कई मान्यताएं भगवान टपकेश्वर के इस स्थान से जुड़ी हैं, जो अद्भुत और अलौकिक हैं। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली और तपस्थली भी यही मंदिर कहा जाता है। जहां आचार्य द्रोण और उनकी पत्नी कृपि ने भगवान शंकर की पूजा अर्चना की थी।

इससे खुश होकर शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। इसके बाद उनके यहां अश्वत्थामा का जन्म हुआ। मान्यता ये भी है कि अश्वत्थामा की दूध पीने की इच्छा हुई थी। लेकिन उनकी माता कृपि द्वारा उनकी इच्छा की पूर्ति नहीं हुई। इस वजह से अश्वत्थामा ने घोर तप किया। इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वरदान के रूप में गुफा से दुग्ध की धारा बहा दी। तब से यूं ही दूध की धारा गुफा के शिवलिंग पर टपकती रही। कहा जाता है कि कलियुग में इस धारा ने जल का रूप ले लिया। इसलिए यहां भगवान भोलेनाथ को टपकेश्वर कहा जाता है। मान्यता ये भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला। अश्वस्थामा की गुफा भी यहीं है, जहां उनकी एक मूर्ति भी विराजमान है। इस सावत आप भी इस मंदिर के दर्शन जरूर कीजिए और भगवान शंकर की भक्ति में तल्लीन हो जाइए। जय उत्तराखंड ।


  • MORE UTTARAKHAND NEWS

View More Latest Uttarakhand News
  • TRENDING IN UTTARAKHAND

View More Trending News
  • More News...

News Home