image: lethe dakwania butterfly of uttarakhand

सिर्फ उत्तराखंड में है इस तितली की एकमात्र प्रजाति, जो ‘महादेव’ के चरणों में रहती है !

Jul 22 2017 11:52AM, Writer:दीपिका

क्या आप इस बारे में जानते हैं कि उत्तराखँड में तितली की एक ऐसी प्रजाति है, जो दुनिया में कहीं नहीं पाई जाती। खास बात ये है कि ये तितली केदारनाथ में ही आपको मिलेगी और इसके अलावा दुनिया के किसी भी कोने में ये तितली आपको नहीं मिलेगी। दरअसल उत्तराखंड में एक ऐसी तितली की प्रजाति है, जो अपने में कई रहस्य समेटे हुए है। इनके जीवन चक्र, भोजन आदि कई महत्वपूर्ण पहलुओं को लेकर अब पर्दा उठ रहा है। इसी को लेकर विशेषज्ञ कई बार केदारनाथ में आयोजित होने वाली कार्यशाला में मंथन कर चुके हैं। ये पहली बार है जब केदारनाथ सरीखे ऊंचाई वाले स्थान पर वन विभाग और बटरफ्लाई शोध संस्थान ने तितलियों पर अध्ययन के लिए संयुक्त कार्यशाला का आयोजन किया। अब आपको बताते हैं कि इस तितली का नाम क्या है और क्यों ये तितली सबसे खास तितलियों में से एक है। अगर आपको भी ये खबर अच्छी लगे तो शेयर करना मत भूलिएगा।

तितली विशेषज्ञों के मुताबिक लेथे डकवानिया नामक तितली अब तक केवल उत्तराखंड में ही देखी गई है। इस वजह से बड़े बड़े पर्यावरणविद इसे लेकर कई बार कार्यशाला कर चुके हैं। इस तितली का महादेव से भी संबंध है। कहा जाता है कि जब केदरनाथ के कपाट खुलते हैं तो उस वक्त ही ये तितली केदारनाथ की तरफ आती है। इसके साथ ही ये तितली केदार के कपाट बंद होते ही कहीं गायब हो जाती है। इस तितली को लेकर जो कार्यशालाएं हुई हैं, वो केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में ही हुई हैं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि इसके बारे में अब तक कोई भी प्रमाणिक तथ्य सामने नहीं आए हैं। इस कार्यशाला में मुंबई, केरल, कोलकाता, गुजरात, लखनऊ, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और राजस्थान के जाने-माने तितली विशेषज्ञ भाग ले चुके हैं। लेथे डकवानिया नामक ये तितली साल 2015 में केदारनाथ में खोजी गई थी। इसके अलावा भी इस तितली को लेकर कुछ और भी खास बात है।

ये एकमात्र तितली है जो इतनी अधिक ऊंचाई पर खोजी गई। तितली विशेषज्ञ पीटर स्मेटाचेक की मानें तो संभवत ये तितली विशेष प्रकार के बांस और रिंगाल से अपना भोजन लेती है। इस तितली का सबसे पहले उल्लेख 1939 में प्रकाशित पुस्तक जोनल आफ बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के लेखक टाइटलर ने किया था। 1939 से पूर्व किसी व्यक्ति ने इसे ब्रिटिश संग्रहालय को भेंट कर दिया। संग्रहालय द्वारा लेथे डकवानिया को मिलते-जुलते कॉमन फारिस्टर लेथे इसाना नाम की तितली के साथ मिला दिया गया। 1939 में टाइटलर ने पहचाना कि लेथे डकवानिया अलग प्रजाति है। 1939 के बाद इसको 2015 में केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में खोजा गया। अब आपको बताते हैं कि इसका नाम कैसे पड़ा। जब केदार और बदरीनाथ में पैदल यात्रा का चलन था, तब बद्रीनाथ जाने के लिए नंदप्रयाग से रामणी-कुंवारीखाल होते हुए जोशीमठ का रास्ता अपनाना पड़ता था। 1939 में रामणी और कुंवारीखाल के बीच डकवानी में इस तितली को देखा गया। इसी कारण इसका नाम लेथे डकवानिया पड़ा।


  • MORE UTTARAKHAND NEWS

View More Latest Uttarakhand News
  • TRENDING IN UTTARAKHAND

View More Trending News
  • More News...

News Home