image: Story of balbhadra singh negi

Video: सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी, अफगानों का ‘यमराज’, अंग्रेजों ने इन्हें कहा था ‘जेम्स बॉन्ड’

Jul 29 2017 5:28PM, Writer:अमित

आज हम आपको एक ऐसे वीर पहाड़ी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आपका दिल जोश से उफान मारेगा। गढ़वाल राइफल्स के जन्मदाता, पहाड़ी जेम्स बांड, आंग्ल-अफगान युद्ध के नायक सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी। जिन्होंने सन् 1879 में कंधार के युद्ध में अफगानों के विरुद्ध अपनी अद्भुत हिम्मत, वीरता और लड़ाकू क्षमता को दिखाया था। इस वजह से उन्हें ‘आर्डर ऑफ मैरिट’, ‘आर्डर ऑफ ब्रिटिश इण्डिया’, ‘सरदार बहादुर’ जेसे कई सम्मान दिए गए थे। 1879-80 के द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध में सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी के युद्ध कौशल से ब्रिटिश हुकूमत बहुत प्रभावित हुई थी। उन्होंने बलभद्र को ब्रिटिश अवार्ड आफ मेरिट से सम्मानित किया गया। ये सम्मान उन्हें भारतीय सेनाओं के संचालक सर फ्रैंडरिक राबर्ट्स ने दिया। इसके साथ ही उन्हें सर्वोत्तम सैनिक, सरदार बहादुर, आर्डर और ब्रिटिश इंडिया का भी खिताब दिया गया। खास बात ये रही कि उन्हें राबर्टस का एडीसी नियुक्त किया गया था। बलभद्र नेगी की गढ़वाली रेजीमेंट बनाने की इच्छा थी।

जिसके लिए तत्कालीन प्रधान सेनापति राबर्टस ने वायसराय लार्ड टफरिन को इसकी अनुशंसा का पत्र भेजा। इस पत्र में लिखा था कि ‘एक जाति जो बलभद्र जैसे पुरुषों को पैदा करती है उसे अपनी एक अलग बटालियन मिलनी चाहिए’। आखिरकार अप्रैल 1887 में गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिए। जिसमें 6 कंपनी गढ़वाली सैनिकों की और दो गोरखों की शामिल की गई। 5 मई 1887 को कुमांऊ के अल्मोड़ा में लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेनवारिंग के नेतृत्व में पहली गढ़वाली बटालियन खड़ी कर दी गई। चार नवंबर 1887 को ये बटालियन पहली बार लैंसडौन पहुंची। लैंसडौन में छावनी बसाने का सुझाव भी सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी ने ही दिया था। ये वो पल था जब वीर पहाड़़ियों के लिए एक अलग से छावनी बनाई गई। बलभद्र सिंह जानते थे कि किस तरह से इस बटालियन को चलाना है।

उस समय दूरदृष्टि रखने वाले पारखी अंग्रेज शासक गढ़वालियों की वीरता और युद्ध कौशल का रूझान देख चुके थे। तब तक बलभद्र सिंह नेगी प्रगति करते हुए जंगी लाट का अंगरक्षक बन गए थे। माना जाता है कि बलभद्र सिंह नेगी ने ही जंगी लाट से अलग गढ़वाली बटालियन बनाने की सिफारिश की। कुछ वर्षों बाद कालौडांडा का नाम उस वक्त के वाइसराय लैन्सडाउन के नाम पर ‘लैन्सडाउन’ पड़ा, जो आज भी गढ़वाल रेजिमेंटल सेंटर है। ये वही भूमि है, जहां से देश को वीर जवान मिलते हैं। ये वो ही भूमि है, जहां से देश के नायक दुश्मनों के खिलाफ हुंकार भरते हैं। आज भले ही आप कहीं भी रह रहे हों, लेकिन अपनी मातृभूमि के इस गौरव को नहीं भूल सकते। हां अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो इसे शेयर जरूर कीजिए, ताकि दुनिया को पता चल सके कि आखिर क्या होते हैं वीर पहाड़ी। जय उत्तराखंड


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