देवभूमि के इस मंदिर से आप कभी खाली हाथ नहीं जा सकते, मां कुछ जरूर देंगी !
Aug 1 2017 8:37AM, Writer:कपिल
कहते हैं कि देवभूमि में जन्म लेने वाला ही जन्मजन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। कदम कदम पर आपको उत्तराखंड में चमत्कार ही दिखेंगे। आज हम आपको उत्तराखँड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां सिर्फ एक बार दर्शन कर लेने से ही सातजन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। जी हां आज हम बात कर रहे हैं सुरकंडा देवी मंदिर की। प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर टिहरी जनपद में जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित हैं। ये स्थान समुद्रतल से करीब 3000 मीटर की ऊचांई पर है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां सती का सिर गिरा था। कहानी कुछ इस तरह है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया। लेकिन, शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गई। वहां दूसरे देवताओं की तरह सती का सम्मान नही किया गया। पति का अपमान और स्वयं की उपेक्षा से क्रोधित होकर सती यज्ञ कुंड में कूद गई।
इस पर शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे। इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से ये स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इसका उल्लेख केदारखंड व स्कंद पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि देवताओं को हराकर राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में देवताओं ने माता सुरकंडा देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना की कि उन्हें उनका राज्य मिल जाए। राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना की थी। उनकी मनोकामना पूरी हुई और देवताओं ने राक्षसों को युद्घ में हराकर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। सुरकंडा मंदिर में गंगा दशहरा के मौके पर देवी के दर्शनों का विशेष महात्म्य है। माना जाता है कि इस समय जो देवी के दर्शन करेगा, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। यह जगह बहुत रमणीक है। खास बात ये है कि मां अपने दरबार से किसी को खाली हाथ नहीं जाने देती। मां सुरकंडा देवी के लिए कहा जाता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना जरूर पूरी होती है।
अब आपको यहां के नजारों के बारे में भी बता देते हैं। आप सुरकंडा मां के दरबार में खड़े हो जाइए, यहां से बदरीनाथ केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं। सर्दियों में अधिकांश समय यहां पर बर्फ गिरी रहती है। मार्च और अप्रैल में भी मौसम ठंडा ही रहता है। मई से अगस्त तक अच्छा मौसम रहता है। इसके साथ ही मंदिर प्रांगण में यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधा है। सुरकंडा देवी मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहन सुविधा उपलब्ध है। देहरादून वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूर तय कर कद्दूखाल पहुंचना पड़ता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी पर मंदिर है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी दूरी तयकर भी यहां पहुंचा जा सकता है। इसलिए कहा जाता है कि जीवन में एक बार सुरकंडा देवी के दर्शन काफी ज्यादा जरूरी हैं। मौका मिले तो एक बार जरूर मां के दरबार में आएं।