image: Story of sem mukhem

ये है उत्तराखंड का पांचवां धाम, नागवंशियों का गढ़, नाग देवता का घर

Aug 10 2017 11:50AM, Writer:सुनीता

उत्तराखंड, यानी पग पग पर धार्मिक मान्यताओं वाला अद्भुत और अलौकिक राज्य। ऐसा राज्य आपको देश में शायद ही कहीं और मिले, जहां कदम कदम पर चमत्कार आपका इंतजार कर रहे होते हैं। उत्तराखंड की पावन धरती पर समय-समय पर कई देवी-देवताओं ने अवतार लिए हैं, यहाँ की सुन्दरता और पवित्रता पुराणों के युग से प्रसिद्ध है | इसी कड़ी में एक और कथा प्रचलित है जो कि भगवान श्री कृष्ण और नाग देवता से जुडी हुई है। वैसे तो सेम नागराजा से कई कहानियां जुडी हुई हैं, लेकिन यहाँ के स्थानीय निवासियों की कथा सच में इस स्थान की भव्यता के बारे में बताती है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण एक समय यहां आये थे और यहां की सुन्दरता और पवित्रता ने भगवान श्री कृष्ण का मन मोह लिया। तब प्रभु श्री कृष्ण ने यहीं रहने का फैसला लिया पर उनके पास यहां रहने के लिए जगह नहीं थी।

प्रभु श्री कृष्ण ने रमोला नाम के एक राजा से रहने के लिए जगह मांगी। रमोला इस जगह पर उस वक्त राज करते थे। राजा रमोला जो कि श्री कृष्ण जी के बहनोई भी थे, भगवान को अधिक पसंद नहीं करते थे। तो उन्होंने श्री कृष्ण जी को जगह देने से मना कर दिया | किन्तु भगवान श्री कृष्ण को ये भूमी इतनी पसंद आ गयी थी कि उन्होंने बस यहीं रहने का प्रण कर लिया था | काफी मनाने के उपरांत राजा रमोला ने भगवान को ऐसी भूमी दी जहाँ वह अपनी गायों और भैंसों को बांधता था | फिर भगवान श्री कृष्ण ने वहां एक मंदिर की स्थापना की जिसे आज हम सेम नागराजा के रूप में जानते हैं | राजा रमोला इस बात से अनजान था की प्रभु खुद उसके पास आये हैं। काफी समय तक भगवान उसी स्थान पर रहे | एक दिन नागवंशी राजा के स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण आये और उन्होंने नागवंशी राजा को अपने यहाँ होने के बारे में बताया।

नागवंशी राजा ने अपनी सेना के साथ प्रभु के दर्शन करने चाहे पर राजा रमोला ने उन्हें अपनी भूमी पर आने से मना कर दिया। इससे नागवंशी राजा क्रोधित हो गये और उन्होंने राजा रमोला पर आक्रमण करना चाहा | आक्रमण होने से पहले ही नागवंशी राजा ने राजा रमोला को प्रभु के बारे में बताया। फिर प्रभु श्री कृष्ण का रूप देखकर राजा रमोला को अपने कृत्य पर लज्जा हुई | उसके बाद से प्रभु वहां पर नागवंशीयों के राजा नागराजा के रूप में जाने जाने लगे। कुछ वक्त बाद प्रभु ने वहां के मंदिर में हमेशा के लिए एक बड़े से पत्थर के रूप में विराजमान होना स्वीकार किया और परमधाम के लिए चले गये | उसी पत्थर की आज भी नागराजा के रूप में पूजा करने का प्रावधान है | लोगों की आस्था के अनुसार प्रभु का एक अंश अभी भी इसी पत्थर में स्थापित है और करोडो व्यक्तियों की मनोकामना पूरी होते हुए ये बात सिद्ध भी होती है |


  • MORE UTTARAKHAND NEWS

View More Latest Uttarakhand News
  • TRENDING IN UTTARAKHAND

    View More Trending News
    • More News...

    News Home