मनमोहन बुधानी की शहादत कैसे भूलेगा उत्तराखंड ? इन्हें भी मनाना था 15 अगस्त
Aug 15 2017 10:32AM, Writer:कपिल
मां तेरा मान रहे, तेरा सम्मान रहे, तेरा गौरव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें ना रहें। आप आज आजादी का पर्व मना रहे हैं, जो कि खुशी की बात है। लेकिन हम उत्तराखंडियों को आज उन शहीदों की याद दिला रहे हैं,जो हंसते हंसते मातृभूमि के लिए कुर्बान हो गए। अब हम आपको उत्तराखंड शहीद मनमोहन बुधानी के बारे में बता रहे हैं। 23 साल का लड़का, रौबदार चेहरा, इंडियन आर्मी के सबसे तेज तर्रार जवानों में से एक, दुश्मन की गोली का जवाब बम से देने वाले शेर का नाम है मनमोहम बुधानी। ये नाम अमर है, अजर है, इसे कोई मिटा नहीं सकता। 17 अप्रैल 2017 यानी पिछले साल, वो सोमवार की रात थी और देश की सरहद पर आतंकियों ने धावा बोल दिया। पाकिस्तान के बारे में तो आप जानते ही हैं, वो कभी भी हरकतों से बाज नहीं आता है और ये बात इंडियन आर्मी अच्छी तरह से जानती है।
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कश्मीर में मेंढर के बालनोई सेक्टर में सीमा पार से जबरदस्त गोलीबारी हुई। इस गोलीबारी में उत्तराखंड का वीर सपूत मनमोहन बुधानी शहीद हो गया। उत्तराखंड के कोटाबाग के ग्राम आंवलाकोट का रहने वाला था ये वीर शहीद। पिता खीमानंद बुधानी ने जब अपने बेटे के पार्थिव शरीर को अपनी आंखों के सामने देखा तो टूटकर रह गए। मनमोहन बुधानी दो साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे। 20 कुमाऊं रेजीमेंट का वो जांबाज जवान, जिसके घर में कभी हर वक्त खुशी का माहौल रहता था। इसके बाद से घर और गांव में सन्नाटा पसरा है। मनमोहन अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटा था। पिता खीमानंद बुधानी गंगोलीहाट में ग्राम विकास अधिकारी हैं। शहीद मनमोहन के तीन चचेरे भाई भी सेना में हैं। मनमोहन अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटा था।
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आज आप 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, वेकिन ये मत भूलिएगा कि एक साथी और भी था, जो देश के लिए कुर्बान हो गया। हम सभी देशवासी शहीद को सलामी देते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। मनमोहन बुधानी की चचेरी बहन का अप्रैल के महीने में 24 तारीख को ही विवाह होना था। परिवार इन दिनों तैयारियों में जुटा था, लेकिन मनमोहन के शहीद होने की खबर ने खुशी के माहौल को मातम में बदल दिया। कोटाबाग वो जगह है, जिसे वीरों की भूमि कहा जाता है। 13 फरवरी 2017 को ही कोटाबाग के धीरेंद्र शाह ने कश्मीर क्षेत्र में तैनाती के दौरान देश के लिए जान न्यौछावर कर दी थी। कोटाबाग को सेनानी बाहुल्य क्षेत्र कहा जाता है। 15 अगस्त के इस पावन मौके पर हम उत्तराखंड से अपील करते हैं कि दो मिनट का वक्त इनके लिए भी निकालें।