image: Story of martyr jeet bahadur thapa

देवभूमि का दुलारा ‘जीतू’, आखिरी दम तक आतंकियों से लड़ा, देश के लिए हुआ कुर्बान

Aug 15 2017 2:21PM, Writer:कपिल

15 अगस्त वो दिन है, जिस दिन हम देश के शहीदों को याद करते हैं। वो शहीद जिन्होंने अपने प्राणों की कभी परवाह नहीं की, वो शहीद जो दिन रात आपके लिए तत्पर रहे, वो शहीद जो अपना परिवार भूल गए और देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे बैठे। 15 अगस्त इन्हें भी मनाना था, रक्षाबंधन इन्हें भी मनाना था लेकिन नियति का खेल ऐसा है कि ये आज हमारे बीच नहीं हैं। ऐसा ही उत्तराखंड का एक लाल है जीत बहादुर थापा। वक्त के साथ साथ हम वीरों की कुर्बानी भूल जाते हैं लेकिन 15 अगस्त वो वक्त है, जब इन्हें याद कर सलामी देने का मन करता है। उत्तराखंड ने देश को ऐसे वीर दिए हैं कि आपको इनकी कहानी पढ़कर गर्व होगा। 7 जून 2017 का दिन उत्तराखंड के लिए बुरी खबर लेकर आया था। जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नौगाम सेक्टर में उत्तराखंड का लाल जीत बहादुर थापा शहीद हो गया था। अदम्य साहस का परिचय देते हुए जीतू देश के लिए आखिरी दम तक दुश्मनों से लड़ता रहा।

देहरादून का सपूत नायक जीत बहादुर सिंह थापा इस मुठभेड़ में घायल हो गया था। घायल जीत बहादुर को राष्ट्रीय राइफल्स अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। जीत सिंह थापा 37 साल के थे। वो 4/1 गोरखा राइफल्स में कुपवाड़ा जिले के नोगाम सेक्टर में तैनात थे। 7 जून की शाम को कुपवाड़ा में आंतकियों ने धावा बोला। आतंकी मुठभेड़ के दौरान जीत सिंह के बायें हिस्से में गोली लगी थी। इसके बाद भी वो लड़ते रहे। वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इसके बाद उन्हें तुरंत श्रीनगर के मिलिट्री अस्पताल ले जाया गया था। उन्हें आठ जून को दिल्ली के राष्ट्रीय राइफल्स अस्पताल रेफर कर दिया गा। चार दिन तक जीतू जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ते रहे। लेकिन मौत जीत गई और जिंदगी हार गई। राज्य समीक्षा शहीद जीत सिंह के शौर्य को सलाम करता है।

देवभूमि के प्रतापी वीरों की ये दास्तान कभई खत्म नहीं हो सकती। करगिल वॉर के आंकड़े बताते हैं कि देश के लिए शहीद होने वाले सबसे ज्यादा सैनिक उत्तराखंड के थे। जीत बहादुर 5 भाई बहनों में सबसे छोटे थे। लाडले बेटे की मौत की खबर सुनकर मां सन्न हो गई । रो-रोकर मां का बुरा हाल हो गया। जीतू के के दो बड़े भाई हैं। एक भाई हवलदार हैं और 6/8 जीआर श्रीनगर में तैनात हैं। दूसरा भाई सेना से रिटायर्ड है। जीतू पढ़ाई डीएवी पीजी कालेज से हुई थी। जीतू की पांच साल बेटी मानवी और 3 महीने का बेटा रौनक थापा है। बेटी आज भी पूछती है कि पापा कहां चले गए और कब आएंगे ? खास बात ये भी है कि जीतू 3 महीने बाद रिटायर्ड होने वाले थे लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। आज आप 15 अगस्त धूमधाम से मना रहे हैं, जरा सोचिए शहीद के परिवार पर क्या गुजर रही होगी। जब तीज -त्योहारों में बेटा घर नहीं लौटता तो मां के दिल पर क्या गुजरती है, ये एक मां ही जानती है।


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