image: Gopinath tample in gopeshwar

देवभूमि का वो मंदिर, जहां खत्म होता है विज्ञान, 21वीं सदी में साइंस को चुनौती!

Aug 17 2017 7:55AM, Writer:कपिल

उत्तराखंड की धरती यानी देवताओं की धरती। ना जाने कब इस धरती में आपका देवताओं से साक्षात्कार हो जाए, कोई नहीं जानता। यहां का हर गांव. हर कस्बा, हर शहर देवस्थानों से भरा पड़ा है। अलग अलग स्थानों की अलग अलग रीतियां ही तो उत्तराखंड को बेहद खूबसूरत बनाती हैं। आज हम आपको उत्तराखंड में महादेव की एक तपस्थली के बारे में बताने जा रहे हैं। ये एक ऐसी जगह जहां सदियों तक देवाधिदेव ने तप किया था। ये ही वो जगह है, जहां महादेव को क्रोध आया तो उन्होंने कामदेव का भस्म कर दिया। ये ही वो जगह जिसके लिए कहा जाता है कि यहां खुद कभी एक गाय आकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी। कहा जाता है कि केदारनाथ के बाद ये हबी मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर की श्रेणी में आता है। उत्तराखंड के चमोली जिलि में बसा है खूबसूरत सा शहर गोपेश्वर। ये शहर इतना मनोरम है कि इसकी खूबसूरती बार बार आपको इसकी तरफ खींच लाएगी।

इसी शहर में स्थित है बाबा गोपीनाथ का भव्य मंदिर। इस स्थान पर आते ही अनुभूति होती है कि आप किसी अलौकिक शक्ति के बीच हैं। खुद बड़े बड़े रिसर्चर्स भी ये कह चुके हैं कि ‘उत्तराखंड के भगवान गोपीनाथ सच में एक दिव्य शक्ति हैं’। रिसर्च में यहां कई बार पुरानी शिलायें और शिवलिंग पाए गए हैं, जो इस बात को दर्शाते हैं कि ये मंदिर कितना प्राचीन रहा होगा। विज्ञान को तो ये मंदिर कई बार चुनौती दे चुका है। हर बार इस अलौकिक शक्ति के आगे विज्ञान फेल हो जाता है। कई बार रिसर्चर खुद कह चुके हैं कि उत्तराखंड के कुछ मंदिरों में अद्भुत ताकते हैं, उनमें से एक मंदिर गोपीनाथ मंदिर भी है। विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है कि लोग अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने की सोच रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड में महादेव की इस तपस्थली को ना विज्ञान डिगा सका और ना ही रिसर्चर कुछ कर पाए।

भव्य शिलाओं से बने इस मंदिर की वास्तुकला आज भी दुनिया के लिए एक चुनौती है। अब पुराणों की बात करते है। पुराणों में इस जगह के बारे में लिखआ गया है कि ये ही जगह भगवान शिव की तपस्थली थी। यहां पर महादेव ने कई सालों तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि ये ही वो जगह है जहां महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म किया था क्योंकि कामदेव उनकी तपस्या में विघ्न डाल रहे थे। हालांकि बाद में अपनी योग साधना से उन्होंने कामदेव को फिर जीवित कर दिया था। एक ही स्थान पर जन्म और मृत्यु की वजह से ही इस स्थान को दिव्य शक्ति का पुंज कहा गया। इस मंदिर में अष्टधातु का त्रिशूल बना है, जो कि काफी आकर्षक है। ये त्रिशूल ये भी साबित करता है कि महादेव किस रूप के रहे होंगे। इस मंदिर से कुछ दूर वैतरणी नामक कुंड स्थापित है। इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करके लोग खुद को धन्य मानते हैं ।


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