जागो उत्तराखंडियो ! बर्बादी की कगार पर ‘देवभूमि का अमृत’, इसे बचा लो !
Aug 31 2017 9:39AM, Writer:प्रगति
सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में ये बेशकीमती फूल पाया जाता है। इस पुष्प का नाम है ब्रह्म कमल। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के मुताबिक ब्रह्म कमल को इसका नाम ब्रह्मदेव के नाम पर मिला है। इसका वैज्ञानिक नाम साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा (Saussurea obvallata) है। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया, कुसुम और भृंगराज इसके ही परिवार के पुष्प कहे जाते हैं। ब्रह्मकमल सामान्य कमल की तरह पानी में नहीं उगता, बल्कि जमीन पर गता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय के पहाड़ी ढलानों या 3000-5000 मीटर की ऊंचाई पर गता है। इसकी सुंदरता और दैवीय गुणों से प्रभावित हो कर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। वर्तमान में भारत में इसकी करीब 60 प्रजातियों की पहचान की गई है।
इन 60 प्रजातियों में से अकेले 50 से ज्यादा प्रजातियां हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में ये विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ में पाया जाता है। भारत के अन्य भागों में इसे और भी कई नामों से पुकारा जाता है। हिमाचल में इसे दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस कहा जाता है। साल में एक बार खिलने वाले गुल बकावली को भी कई बार भ्रमवश ब्रह्मकमल मान लिया जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण की वजह से इसे शुभ माना जाता है। इस फूल की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।
कहा जाता है कि द्रौपदी इसे पाने के लिए व्याकुल हो गई थी। पिघलते हिमनद और उष्ण होती जलवायु की वजह से इस दैवीय पुष्प पर संकट के बादल पहले ही गहरा रहे थे। भक्ति में डूबे श्रद्धालुओं द्वारा केदारनाथ में ब्रह्मकमल का अंधाधुँध दोहन भी इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। इसी तरह हेमकुण्ड साहिब यात्रा में भी ब्रह्मकमल को नोचने का रिवाज-सा बन गया है। पूजा-पाठ के उपयोग में आने वाला औषधीय गुणों से युक्त ये दुर्लभ पुष्प तीर्थयात्रीयों द्वारा अत्यधिक दोहन से लुप्त होने की कगार पर ही पहुँच गया है। ब्रह्मकमल जिसे भगवान ब्रह्मा के कमल का नाम दिया गया था। इसके अंधाधुँध दोहन के चलते इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इनकी कमी के चलते बद्रीधाम मंदिर समिति ने उत्तराखंड सरकार से इनके संरक्षण के लिए गुहार भी लगाई है। इस संकट से उबरने के लिए सरकार को कोई कदम उठाना पड़ेगा।