उत्तराखंड की मां राज राजेश्वरी, जहां शिलालेखों में है देवभूमि का गौरवमयी इतिहास
Sep 9 2017 9:11PM, Writer:कपिल
भारत में आपको कदम कदम पर अनोखे चमत्कार देखने को मिलते हैं। खास तौर पर हिंदुस्तान के राज्य उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इस भूमि में एक रहस्यमयी मंदिर है, जिसे राज राजेश्वरी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में नाथ संप्रदाय के लोगों की समाधियां हैं। उत्तराखंड के देवलगढ़ में ये मंदिर मौजूद है। इस गढ़ का इतिहास अपने आप में अनोखा रहा है। पुराने वक्त में उत्तराखंड में 52 छोटे छोटे गढ़ थे। इनमें से एक गढ़ था देवलगढ़ जिसे चांदपुर गढ़ के राजा अजपाल ने अपनी राजधानी बनवाया था। 14 वीं शताब्दी में राजा अजयपाल ने इस गढ़ को राजधानी बनाया था। कहा जाता था कि देवलगढ़ सामरिक दृष्टि से बहुत ही सुरक्षित स्थान था। में अपनी राजधानी बनाया। 1412 में इस गढ़ को राजा ने राजधानी बनाया था। इसके 6 साल के बाद ही अजयपाल ने अपनी राजधानी श्रीनगर बनाई।
अजयपाल ने 19 सालों तक शासन किया था। वो पहला राजा था ने 52 गढ़ों में से 48 गढ़ों पर जीत हासिल की थी। इसी राज परिवार की कुलदेवी राज राजेश्वरी थी। राज राजेश्वरी मन्दिर देवलगढ़ का सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मन्दिर है। इस मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में ही राजा अजयपाल के शासन काल में कराया गया था। इस मन्दिर में तीन मंजिलें हैं । तीसरी मंजिल के दाहिने कक्ष में वास्तविक मंदिर है। इस कक्ष में देवी मां की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं हैं। इन सभी प्रतिमाओं में मां राज राजेश्वरी की स्वर्ण की प्रतिमा है। ये मूर्ति बेहद ही सुंदर कही जाती है। इस मन्दिर में यन्त्र पूजा होती है। इस मंदिर में आपको महाकाली यन्त्र, कामख्या यन्त्र, महालक्ष्मी यन्त्र, बगलामुखी यन्त्र और श्रीयन्त्र मिलेंगे, जिनकी विधिवत पूजा होती है। नवरात्रों में रात के वक्त राजराजेश्वरी यज्ञ का आयोजन किया जाता है।
इस मंदिर में अखण्ड ज्योति की परम्परा सदियों से चली आ रही है। इस वजह से जागृत शक्तिपीठ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर कई मन्दिर समाधि और द्वार हैं। इन मन्दिरों का जीर्णोद्धार कांगड़ा से आये राजा देवल ने करवाया था। कहा जाता है कि इस मंदिर में नाथ सम्प्रदाय के लोगों की भी समाधि भी हैं। इन समाधियों पर खुदे शिलालेख इस मंदिर के पौराणिक इतिहास को बताते हैं। इस दुर्लभ मन्दिर समूह को देखकर प्रमाणित हो जाता है कि उस वक्त वास्तुकला किस उत्कर्ष पर थी। इस मन्दिर के पीछे सत्यनाथ का प्राचीन मन्दिर है। इस मंदिर को राजा अजयपाल द्वारा बनाया गया था। इस जगह पर सत्यनाथ भैरव और राज-राजेश्वरी यन्त्र की स्थापना की गई थी। इसके अलाव इस मंदिर में कालभैरव, आदित्यनाथ और माता भुवनेश्वरी की मूर्तियां भी प्रतिष्ठापित हैं। इसके अलावा आपको यहां लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्रीकृष्ण मंदिर, भैरव गुफा और दत्तात्रेय मन्दिर भी मिलेंगे।