image: ek hathiya deval temple

उत्तराखंड का सबसे रहस्यमयी शिव मंदिर, यहां कभी भी नहीं होती पूजा, जानिए क्यों ?

Sep 11 2017 6:53PM, Writer:कपिल

ये मंदिर उत्तराखंड में स्थित कस्बा थल में मौजूद है। ग्राम सभा बल्तिर में ये मंदिर प़ड़ता है। ये मंदिर पूर्ण रूप से महादेव को समर्पित है। इस मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। इस मंदिर की स्थापत्य कला हर किसी को हैरान कर जाती है। यहां लोग भगवान के दर्शन के लिए तो आते हैं लेकिन पूजा नहीं करते। आखिर ऐसा क्या हुआ था इस मंदिर में, इस बारे में हम आपको बता रहे हैं। इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल पड़ा था। ऐसा इसलिए क्योंकि ये सिर्फ एक हाथ से बना है। पुराने ग्रंथों और अभिलेखों में भी इस मंदिर का जिक्र किया गया है। कहा जाता है कि एक वक्त में यहां कत्यूरी राजा का शासन था। उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था। ये मंदिर स्थापत्य कला का भी सबसे बड़ा प्रमाण है।

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक यहां लोगों का मानना है कि एक बार यहां किसी कारीगर ने मंदिर का निर्माण करना चाहा। वो काम में जुट गया। हैरानी की बात ये थी कि कारीगर ने एक हाथ से ही इस मंदिर को बना दिया था। इस मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है। इस मंदिर को चट्टान काटकर तराशा गया था। इसके साथ ही चट्टान काटकर ही यहां शिवलिंग बनाया गया था। जिस मूर्तिकार ने ये मंदिर बनाया था, उसका हाथ किसी दुर्घटना में कट गया था। इस कारीगर ने रात भर में चट्टान को काटकर एक मंदिर का रूप दे दिया । कहा जाता है कि इसके बाद वो कारीगर गांव छोड़कर चला गया था। किसी का कहना है कि कारीगर ने जैसे ही इस मंदिर को तैयार किया, तो उसकी मौत हो गई। दरअसल उसने शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया था।

कहा जाता है कि ऐसे शिवलिंग की पूजा फलदायक नहीं होती। दोषपूर्ण मूर्ति का पूजनखतरों का सूचक होता है। इस वजह से तबसे इस मंदिर में पूजा नहीं की जाती। इस मंदिर के पीछे दूसरी कहानी भी जुड़ी है। कहा जाता है कि एक राजा ने एक कुशल कारीगर का एक हाथ सिर्फ इसलिए कटवा दिया कि कोई ऐसा दूसरा खूबसूरत मंदिर ना बना सके। इस वजह से कारीगर ये गांव छोड़कर चला गया। जनता को ये बात मालूम हुई तो उसे बहुत दुख हुआ। लोगों ने ये फैसला किया कि उनके मन में भगवान के प्रति श्रद्धा तो रहेगी, लेकिन राजा के इस कृत्य का विरोध जताने के लिए वे मंदिर में पूजन आदि नहीं करेंगे। तबसे इस मंदिर में पूजा नहीं होती। आज भी ये मंदिर भारत के सबसे शापित मंदिरों में एक कहा जाता है।


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