देवभूमि के छोरे ने बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड, पिता ने ये सपना पूरा करने के लिए खेत बेचा था !
Sep 16 2017 8:36PM, Writer:कपिल
आखिरकार वो पल आ ही गया जब उत्तराखंड के इस लाल का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज होगा। जी हां हम बात कर रहे हैं प्रदीप राणा की, जो कि उत्तराखंड के एक गांव के रहने वाले हैं। प्रदीप राणा साइकिल से एक इतिहास रचने निकले थे और आखिरकार ये काम अपने मुकाम पर आ पहुंचा है। इस मुकाम पर पहुंचने से पहले ही प्रदीप ने हर रिकॉर्ड तोड़ दिया है। शुक्रवार को प्रदीप ने 15222 किलोमीटर का पिछला रिकॉर्ड पार कर लिया। इसके साथ ही उन्होंने नया कीर्तिमान रच लिया है। जैसे ही प्रदीप हिमाचल प्रदेश के जोगेंद्र नगर पहुंचे तो ये रिकॉर्ड उनके नाम हो गया। हालांकि प्रदीप का अपना लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। उन्होंने 20 हजार किलोमीटर का लक्ष्य बनाया हुआ है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने क लिए के लिए 15222 किलोमीटर पार करने की जरूरत थी, जिसे प्रदीप पहले ही पार कर चुके हैं।
उत्तराखंड के युवा जो कर रहे हैं, वो दुनिया के लिए मिसाल बनता जा रहा है। ऐसा ही एक युवा है प्रदीप राणा। कप्रदीप राणा कुमाऊं के रिठाण गांव के रहने वाले हैं। उनका परिवार बेहद गरीबी में जिया है। इतना समझ लीजिए के बेटे का सपना पूरा करने के लिए पिता ने अपना खेत बेच दिया था। आज वो ही बेटा कीर्तिमान रच रहा है। हाल ही में प्रदीप राणा ने 93 दिनों की यात्रा खत्म की है। अगले महीने तक प्रदीप 20 हजार किलोमीटर का सफर पूरा कर लेंगे। रिठाड़ गांव के रहने वाले प्रदीप राणा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव से ही की थी। इसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए देहरादून चले आए। फिलहाल वो आइटी फर्स्ट ईयर में हैं। जब प्रदीप दसवीं में थे, तो उन्हें साइकिल चलाने का शौक चढ़ा था। आज ये शौक प्रदीप का जुनून बन गया है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
इसलिए प्रदीप ने कबाड़ की दुकान से एक पुरानी साइकिल खरीदी। इस साइकिल की उन्होंने मरम्मत करवाई और अपना लक्ष्य निर्धारित कर दिया। साल 2015 में प्रदीप ने गांव से बागेश्वर और काठमांडू तक का सफर तय किया। इसके बाद 2016-17 में उन्होंने अपने घर वालों को बताया कि वो साइकिल से वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। कहते हैं अगर आपके दिल में कुछ करने की चाहत हो तो सारी कायनात आपके लक्ष्य को आपसे मिलाने में जुट जाती है। ऐसा ही कुछ प्रदीप के साथ हुआ। प्रदीप की बातचीत उस दौरान लंदन में रहने वाले एक उत्तराखंडी भाई राज भट्ट से हुई। राज भट्ट ने प्रदीप की प्रतिभा को पहचाना और उसे एक साइकिल और लैपटॉप दिया। इसके बाद कॉलेज के कुछ दोस्तों ने थोड़ी बहुत रकम जमा की और 23 मई को प्रदीप को देहरादून से रवाना किया। प्रदीप ने कहा था कि वो वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर उत्तराखंड और अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहते हैं।