देवभूमि में हुई थी श्रृष्टि की रचना, इसका सबूत हैं ये 7 सीढ़ीदार कुण्ड !
Sep 21 2017 9:58AM, Writer:कपिल
चमोली जनपद में सप्त कुण्ड। दरअसल यहाँ हर साल "नंदा देवी लोकजात" का आयोजन होता है | अगर देखा जाए तो इस यात्रा को नंदा देवी राजजात से भी भव्य और रमणीक कहा जाता है। इस यात्रा में भी हर गांव से नंदा देवी की पवित्र रिंगाल की"छतोली" के साथ ग्रामीण शामिल होते हैं। अलग अलग गांवों से आकर लोग यहां शामिल होते हैं। ये भव्ययात्रा चमोली जनपद के घाट ब्लाक में मां नंदा देवी के सिद्ध पीठ कुरुड़ से आरम्भ होती है। कुरुड़ से मां नन्दा देवी की डोली के नेतृत्व में हजारों श्रद्धालु गांव - गांव भ्रमण करते हैं। इसके बाद रावण की तपस्थली कही जाने वाली "बैराश कुण्ड" पहुंचती है। इसके बाद ये यात्रा दाणी माता ,भुवनेश्वरी मंदिर , पगना , लुन्तरा ,घूनी और अंतिम गांव रामणी होते हुए बालपाटा बुग्याल , दंन्यनाली बुग्याल और सिम्बाई बुग्याल को पार कर सप्त कुण्ड पहुंचती है।
अब आपको बताते हैं कि आखिर इस जगह का नाम सप्त कुंड क्यों रखा गया है। दरअसल यहां सात विशाल जल के कुण्ड हैं। ये कुण्ड करीब 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं ,जिसकी वजह से ही इस क्षेत्र को "सप्त कुण्ड" कहा गया है। ये सात कुण्ड बेहद ही खूबसूरत हैं। खास बात ये है कि य कण्ड एक के बाद एक सीढ़ीनुमा ढंग से बने हैं। इतनी लंबी यात्रा क बाद सप्त कुण्ंड के दर्शन करना बहद ही शांति और सुख देता है। धार्मिक मान्यता क मुताबिक कहा गया है कि इन सात कुण्डों में सात ऋषि विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं और जनश्रुतियों के मुताबिक यहां पर ही श्रृष्टि की रचना भी हुई थी। सैकड़ों रंगबिरंगी छतोलियां एक साथ लेकर श्रद्धालु इन पवित्र कुंडों की परिक्रमा करते हैं। बस एक जगह बैठ जाइए और दैवीय शक्ति स लबरेज इस नजारे को अपनी आंखों में भर लीजिए।
इसके बाद श्रेष्ठ कुण्ड के एक छोर पर सभी रिंगाल की पवित्र छातोलियों को रख दिया जाता है। इसक बाद गौड़ ब्राहमणों द्वारा "छतोली" से चुनरी, चूड़ी, बिंदिया और अन्य खाद्य सामग्री को उतारा जाता है। य सब कछ भेंट या (सम्लौण) मां नन्दा को समर्पित कर दी जाती है। कुछ लोग हिमालय में स्थित इन पवित्र कुंडों के तट पर अपने पित्रों को तर्पण भी देते हैं। कहा जाता है कि यहां पिंड दान करने से जन्म जन्मांतर के पापों से मक्ति मिलती है। ये यात्रा विधिवत रूप से सैकड़ों ग्रामों का पैदल भ्रमण करने के बाद 16 दिन में पूरी होती है। इस यात्रा की लंबाई 220 किलोमीटर बताई जाती है | इस यात्रा में घाट ब्लाक, दशोली ब्लाक, बिरही निजमूला घाटी के लगभग सभी गांव शामिल होते हैं। पहाड़ में नंदा देवी उत्सव दरअसल हिमालयी जनमानस का पारिवारिक एवं पारम्परिक सौहार्द का उत्सव है।