उत्तराखंड की ‘दुर्गा’, जिसे दुनिया ने कहा ‘लेडी फाइटर’, 22 साल में जीते 40 से ज्यादा युद्ध !
Sep 28 2017 10:13AM, Writer:कपिल
तीलू रौतेली, यानी पहाड़ की लड़कियों और नारी शक्ति की शौर्यगाथा की सबूत। छोटी सी उम्र में जिसने बचपन से ही तलवार और बंदूक चलाना सीख लिया था। छोटी उम्र में ही तीलू की सगाई तय कर दी गयी। शादी होने से पहले ही तीलू का मंगेतर युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गए। तीलू के पिता और भाई भी कत्यूरियों से युद् में वीरगति को प्राप्त हुए थे। तीलू ने इसके बाद शादी ना करने का फैसला किया था। इस बीच कत्यूरी राजा धामशाही ने अपनी सेना फिर से मजबूत की और गढ़वाल पर हमला बोल दिया। खैरागढ़ युद्ध में गढ़वाल के राजा मानशाह को धामशाही की सेना से बचकर चांदकोट गढ़ी में शरण लेनी पड़ी। तीलू जब छोटी थी तो अपनी मां से बोली कि वो कौथिग जाना चाहती है। इस पर उसकी मां ने कहा, ''कौथिग जाने के बजाय तुझे अपने पिता, भाईयों और मंगेतर की मौत का बदला लेना चाहिए। मां बोली कि अगर तू धामशाही से बदला लेने में सफल रही तो जग में तेरा नाम अमर हो जाएगा।
मां की बातों ने तीलू में भी बदले की आग भड़का दी और उन्होंने उसी समय घोषणा कर दी कि वो धाम शाही से बदला लेने के बाद ही कांडा कौथिग जाएगी। उन्होंने क्षेत्र के सभी युवाओं से युद्ध में शामिल होने का आह्वान किया और अपनी सेना तैयार कर दी। तीलू ने सेनापति की पोशाक धारण की। उनके हाथों में चमचमाती तलवार थी। उनके साथ ही उनकी दोनों सहेलियों बेल्लु और रक्की भी सैनिकों की पोशाक पहनकर तैयार हो गयी। कुल देवी राजराजेश्वरी देवी की पूजा करने के बाद काले रंग की घोड़ी 'बिंदुली' पर सवार तीलू, उनकी सहेलियां और सेना रणक्षेत्र के लिये निकल पड़ी। हुड़की वादक घिमंडू भी उत्साहवर्धन के लिये उनके साथ में था। तीलू ने खैरागढ़ से अपने अभियान की शुरूआत की और इसके बाद लगभग सात साल तक वो ज्यादातर वक्त युद्ध में ही व्यस्त रही।
तीलू जहां भी जाती वहां स्थानीय देवी या देवता की पूजा जरूर करती थी और वहीं पर लोगों का उन्हें समर्थन भी मिलता था। उन्होंने सल्ट महादेव को विरोधी सेना से मुक्त कराया । भिलण भौण के युद्ध में तीलू की दोनों सहेलियां बेल्लु और रक्की वीरगति को प्राप्त हो गयी। तीलू इससे काफी दुखी थी लेकिन इससे उनके अंदर की ज्वाला और धधकने लगी। उन्होंने जदाल्यूं की तरफ कूच किया और फिर चौखुटिया में गढ़वाल की सीमा को तय कर दिया। इसके बाद सराईखेत और कालिंका खाल में भी उन्होंने कत्यूरी सेना को छठी का दूध याद दिलाया। सराईखेत को जीतकर उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लिया लेकिन इस युद्ध में उनकी प्रिय घोड़ी बिंदुली को जान गंवानी पड़ी। इसके बाद बीरोंखाल का युद्ध जीतने बाद उन्होंने वहीं विश्राम किया। इस बीच तीलू नहाने जा रही थी तो एक कत्यूरी सैनिक रामू रजवार ने पीछे से तलवार से हमला किया। उनकी चीख सुनकर सैनिक जब तक वहां पहुंचते तब तक वह स्वर्ग सिधार चुकी थी। तीलू रौतेली की उम्र तब केवल 22 वर्ष की थी, लेकिन वो इतिहास में अपना नाम अमर कर गयी।