देवभूमि की वो जगह, जहां माता सीता ने गुजारे थे आखिरी दिन !
Oct 9 2017 9:43AM, Writer:कपिल
उत्तराखंड आदि अनादि काल से देव-देवताओं और मानव जाति के लिए एक बेहतरीन पड़ाव रहा है। जो यहां रहा, उसे जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिली है। चलिए आज जरा बात रामायण की करते हैं। रामायण में देवी सीता का जन्म जिस प्रकार रहस्य माना जाता है उसी प्रकार ये भी एक बड़ा रहस्य है कि उनका आखिरी वक्त कैसे और कहां बीता था। रामायण में एक ऐसा प्रसंग भी आता है, जहां ये जिक्र किया गया है कि एक धोबी के कहने पर भगवान राम ने माता सीता की पवित्रता पर शक किया था। लंका जीतन क बाद की य कहानी सभी को याद है, जब माता सीता को अग्निपरीक्षा भी दनी पड़ी थी। मान्यता है कि श्रीराम ने धोबी के कहने पर सीता को वनवास दे दिया। इसके बाद लक्ष्मण को आदेश दिया कि सीता को हिमालय में किसी स्थान में छोड़ा जाए।
राम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी ने माता सीता को देवप्रयाग से करीब चार किलोमीटर आगे छोड़ा था। कहा जाता है कि उस वक्त लक्ष्मण जी ने माता सीता को देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़ा था। जिस जगह पर लक्ष्मण जी ने माता सीता को विदा किया, वो जगह देव प्रयाग से चार किलोमीटर पास पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ा था। इस गांव के पास ही माता सीता ने अपने लिए एक कटिया बनाई थी। इस कुटिया को अब सीता कुटी या सीता सैंण के नाम से भी जाना जाता है। वक्त बीतने के साथ ही यहां के लोग इस जगह को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये। इसके अलावा कहा येे भी जाता है कि यहां के लोग सीता जी की मूर्ति को अपने साथ अपन गांव मुछियाली ले गये।
मुछियाली गांव में सीता जी का भव्य मंदिर है। कहा जाता है कि यहां से सीता जी बाद में वाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। इसके अलावा एक और खास बात ये भी है कि रामायण क युद्ध के दौरान रावण वध के बाद श्री राम, लक्ष्मण पर ब्रह्म हत्या का भी पाप लगा था। कहा जाता है कि अपने पापों से मुक्ति के लिए श्रीराम और लक्ष्मण देवप्रयाग आए थे। इसके बाद दोनों ही श्रीनगर आए थे। यहां हजारों कमल के पुष्पों से कमलेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की गई। भगवान राम यहां से तुंगनाथ के लिए चले गए थे और काफी वक्त तक वहां चंद्रशिला में बैठकर तप किया था। कुल मिलाकर उत्तराखंड के बारे में आपको ऐसी ऐसी कथाएं सुनने को मिलेंगी, जिनके बारे में पढ़कर आपको गर्व होगा, कि आप देवभूमि में हैं।