image: Best things about choliya dance

Video: देवभूमि का हजारों साल पुराना लोकनृत्य जिसका मतलब है छल,अपनी संस्कृति से जुड़िए

Oct 13 2017 9:28PM, Writer:सुनील

उत्तराखंड का इतिहास हजारों, लाखों साल पुराना है। यहां की संस्कृति और सभ्यता की दुनिया में एक अलग ही पहचान है। कहा जाता है कि उत्तराखंड में हजारों साल पहले एक नृत्य की शुरुआत की गई थी। इस नृत्य को छोलिया कहा जाता है ये कुमाऊं का प्रसिद्ध और परम्परागत लोक नृत्य है। इतिहासकार कहते हैं कि इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। पुराने वक्त से ही छोलिया उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान में से एक रहा है। इस नृत्य की खास बात ये है कि आपको एक साथ श्रृंगार और वीर रस दोनों के दर्शन हो जाते हैं। हालांकि इतिहासकारों के इस नृतिय को लेकर अलग अलग मत हैं। कुछ लोग इसे युद्ध में जीत के बाद किया जाने वाला नृत्य कहते हैं। तो कुछ लोग कहते हैं कि तलवार की नोक पर शादी करने वाले राजाओं के शासन की उत्पत्ति का सबूत ये नृत्य है।

इस नृत्य की एक खास बात ये है कि इसमें ढोल-दमाऊं की भूमिका अहम होती है। इसके अलावा इसमें नगाड़े, मसकबीन, कैंसाल, झंकोरा और रणसिंगा जैसे वाद्य यंत्रों का भी इस्तेमाल होता है। 90 के दशक तक छोलिया डांस करीब करीब हर कुमाउनी शादी में देखा जाता था। आज के दौर में इसकी जगह बैंड-बाजे ने ले ली है। इन नृत्य करने वाले पुरुषों की वेशभूषा में चूड़ीदार पैजामा , एक लंबा सा घेरदार छोला यानी कुर्ता और छोला के ऊपर पहनी जाते वाली बेल्ट कमाल की लगती है। इसके अलावा सिर में पगड़ी, कानों में बालियां, पैरों में घुंघरू की पट्टियां और चेहरे पर चंदन और सिन्दूर लगे होने से पुरुषों का एक अलग ही अवतार दिखता है। आपने देखा होगा कि बारात के घर से निकलने पर नृतक रंग-बिरंगी पोशाकों में तलवार और ढाल के साथ आगे-आगे नृत्य करते चलते हैं।

कहा जाता है कि ये डांस दुल्हन के घर पहुंचने तक जारी रहता है। इन नृतकों के साथ में गाजे-बाजे भी होते है। इसके साथ ही बारात के साथ तुरी या रणसिंगा भी होता है। खास बात ये है कि हाथ में लाल रंग का झंडा होना जरूरी है। नृत्य के दौरान सबसे खास बात ये होती है नृतकों की भाव-भंगिमा में ‘छल’ दिखाया जाता है। वो अपने हाव-भाव से एक दूसरे को छेड़ने का काम करते हैं। इसके साथ ही चिढ़ाने और उकसाने के भाव भी पेश करते हैं। इसके अलावा डर और खुशी के भाव भी नृ़र्तकों द्वारा पेश किए जाते हैं। आस पास मौजूद लोग इस बीच कुछ रुपये उछालते हैं। इन रुपयों को छोल्यार अपनी तलवार की नोक से उठाते हैं। खास बात ये है कि छोल्यार एक-दूसरे को उलझाकर, बड़ी चालाकी से रुपये उठाने की कोशिश करते हैं। ये देखने में बड़ा शानदार लगता है। 22 लोगों की इस टीम में 8 नृतक और 14 गाजे-बाजे वाले होते हैं।


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