उत्तराखंड की इस संस्कृति को हम भूल रहे हैं, इस दिवाली ये मत भुलाइएगा
Oct 15 2017 9:17AM, Writer:कपिल
उत्तराखंड की संस्कृति जितनी समृद्ध है, उतनी ही समृद्ध यहां की कला भी है। लेकिन वक्त के साथ साथ हम शायद इन बातों को भूलते जा रहे हैं। खैर दिवाली नजदीक है, इसलिए हमारी आपसे भी अपील है कि इस बार इस संस्कृति को एक बार जरूर अपने घर पर दोहराएं। शायद आपको अच्छा लगेगा। ऐपण रंगोली हमारी सांस्कृतिक परम्परा और लोक कला है। हमेशा से ऐपण रंगोली धार्मिक सांस्कृतिक आस्थाओं की प्रतीक रही है। इसे त्योहार व्रत पूजा उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर अपने घर आँगन पूजा के स्थान पे बनाया जाता है। हमारे उत्तराखंड में महिलाएँ बड़े शौक एवं उत्साह से अपने गावं घरों में ऐपण रंगोली बनाने के लिए फर्श और दीवारों को लाल मिट्टी से लिप के चावल भीगा के पीसकर चावल के विश्वार से ऐपण रंगोली बनाती है।
महिलाएं घर के हर कमरे में तथा प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाती हैं। रंगोली आँगन के मध्य में कोनों पर या बेल सीधी लकीरों के रूप में चारों ओर बनाई जाती है। सूरज चाँद गणेश फूल पत्ती कलश दीपक स्वस्तिक को सुख समृद्धि एवं मांगल्य का प्रतीक मानकर हर शुभ कार्य में बनाकर करना हमारी संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। मुख्यद्वार की देहरी पर भी रंगोली बनाने की परंपरा है | भगवान के आसन लक्ष्मी चौकी विवाह चौकी यज्ञ की वेदी पर भी रंगोली सजाने की परंपरा है। गावं में घर आँगन बुहारकर लीपने के बाद रंगोली बनाने का रिवाज आज भी विद्यमान है भूमि-शुद्धिकरण की भावना एवं समृद्धि का आह्वान भी इसके पीछे निहित है रंगोली सजाने का मुख्य भाव यही रहता है कि घर पर लक्ष्मी माँ की कृपा हो घर आँगन सुख समृद्धि एवं वैभव से भरा रहे भंडार पूर्ण रहे |
उत्तराखंड की स्थानीय चित्रकला की शैली को ऐपण रंगोली के रूप में जाना जाता है समय के साथ साथ ऐपण रंगोली बनाने के नए नए तरीक़े भी बदले है, पर ऐपण रंगोली का आज भी गावं शहर घर घर आकर्षण महत्व बना हुआ है इसलिए अपने बच्चों को भी अपनी इस कलात्मक परम्परा से पहचान कराते रहना चाहिए जिससे भविष्य में सदियों पीढ़ी दर पीढ़ी पहाड़ की ऐपण रंगोली बनाने की परम्परा सदेव जीवित बनी रहे ||