‘रौतेला’ कौन हैं ? जानिए उत्तराखंड के इन राजपूतों का गौरवशाली इतिहास
Oct 29 2017 6:27PM, Writer:मीत
उत्तराखंड के बारे में कुछ जानकारियां ऐसी हैं, जिनके बारे में आपका जानना भी जरूरी है। इसी कड़ी में हम आपको देवभूमि के उन राजपूतों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें रौतेला कहा जाता है। विशिष्ट राजपूतों में गिने जाने वाले रौतेला आपको गढ़वाल और कुमाऊं दोनों जगह मिलेंगे। नाम के मुताबिक इनका इतिहास भी गौरवशाली है। इतिहासकार कहते हैं कि गढ़वाल में परमार राजघराने से ही रौतेला लोगों का उदय हुआ। इसके अलावा कुमाऊं में चंद राजघराने के वीरों को रौतेला उपाधि दी जाती थी। गढ़वाल के टिहरी और पौड़ी में रौतेला लोगों के गढ़ और गांव हैं। इसके अलावा कुमाऊं के अल्मोड़ा में आपको रौतेला लोग मिलेंगे। इतिहासकार कहते हैं कि गढ़वाल में मालवा के राजा भोज हुए थे, जो कि रौतेला जाति के थे। रौतेला लोगों के बारे में एक पुरानी कहानी भी है, जो शायद सदियों से चली आ रही है।
बताया जाता है कि रौतेला लोग दिवाली से एक दिन पहले राज बग्वाल मनाते हैं। गढ़वाल में रौतेला इस बग्वाल को मनाते हैं। गढ़वाल में 1786 में एक युद्ध हुआ था। इसे पाली की लड़ाई कहा जाता है। रौतेलाओं के राजा मोहन सिंह रौतेला ने इस युद्ध में राजा प्रक्रम शाह को मात दी थी। इस युद्ध में राजा मोहन सिंह रौतेला के भाई लाल सिंह रौतेला ने भी अदम्य साहस दिखाया था। आपने मुंगरा गढ़ का नाम सुना होगा। उत्तरकाशी के नौगांव विकासखण्ड के मुंगरा गांव में मुंगरा गढ़ है। कहा जाता है कि इस गढ़ पर भी रौतेलाओं का अधिकार रहा था। इस गढ़ के रौतेला परिवार वर्तमान में मुंगरा और मुराड़ी गांव में रहते हैं।मुंगरा गढ़ में जाने से पहले हंसोला गढ़ में रौतेला जाति के लोग रहते थे। दो रौतेला भाईयों को को राजा श्रीनगर द्वारा मुंगरा और मुराड़ी की जागीर दी गई थी। इसके अलावा आपने राईं गढ़ का नाम सुना होगा।
ये गढ़ देहरादून के त्यूणी-शिमला मार्ग पर जुब्बल हाटकोटी देवी मंदिर के पास है। कहा जाता है कि रौतेला राजाओं ने इस गढ़ पर भी कुछ वक्त के लिए शासन किया था। रौतेला क्षत्रियों के बारे में कहा जाता था कि वो तलवार के धनी होते थे। अस्त्र और शस्त्र विद्या में माहिर रौतेलाओं से निपटना किसी के लिए भी टेड़ी खीर साबित होता था। हमारे पूर्वजों का ये इतिहास हमारे अाने वाली पीढी को पता चलना चाहिए।जि स दिन हम अपना इतिहास भूल जायेंगे उस दिन कोइ भी हमें मिटा सकता है लेकिन याद रहे लहू अपना रंग जरूर दिखाता है। हमारा मकसद आपको ये बताना है कि उत्तराखंड के लोग पहले किस वैभव और साहस के प्रतीक होते थे। आज जहां देवभूमि के युवा अपने गौरवशाली इतिहास से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि उन्हें उनके पराक्रमी इतिहास की भी जानकारी दी जाए, जिसे वो अपने दिलों में संजो कर रखें।