Video: आज उत्तराखंड में एक त्योहार की धूम है, कहीं आप इस परंपरा को तो नहीं भूले ?
Oct 30 2017 4:29PM, Writer:कल्पना
हम उत्तराखंडी, हमारी परंपराएं और हमारी संस्कृति बेहद ही पौराणिक कही जाती हैं। कुछ ऐसी बातें हैं, जो हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए। हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि अगर हम ही अपनी जड़ों से कट जाएंगे तो हमारा कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा। इसलिए अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखना आज हम सबके लिए बड़ी चुनौती है। इसी संस्कृति और परंपरा की क़ड़ी में आज एक त्योहार पहाड़ों में मनाया जाता है। इसे कहा जाता है इगास बग्वाल। उत्तराखंड में कई जगह इगास बग्वाल मनाई जाती है। दीपावली के त्योहार के 11 दिन बाद इगास बग्वाल मनाई जाती है। ये दीपावली की तरह ही होती है, लेकिन इसका पारंपरिक महत्व काफी बड़ा है। इसमें दीयों और पटाखों की जगह पर भैला खेला जाता है। ये उत्तराखंड का एक पारंपरिक रिवाज है। अब आप ये भी जानिए कि इगास बग्वाल को लेकर क्या पौराणिक मान्यताएं और कहानियां हैं।
कहा जाता है कि भगवान राम के बनवास के बाद अयोध्या पहुंचने पर लोगों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन इतिहासकार कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ों में भगवान राम के पहुंचने की खबर दीपवाली के ग्यारह दिन बाद मिली थी। इसके बाद ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए ग्यारह दिन बाद दीपावली का त्योहार मनाया था। दंतकथाओं के मुताबिक ये भी कहा जाता है कि टिहरी जिले के चंबा का एक व्यक्ति भैला बनाने के लिए लकड़ी लेने जगंल गया था। वो व्यक्ति दीपावली के दिन घर नहीं लौटा था। काफी खोजबीन के बाद भी उस व्यक्ति का कहीं पता नहीं लगा तो ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाई। लेकिन 11 दिन बाद वो व्यक्ति गांव वापस लौटा था। इस वजह से गांव वालों ने उस दिन ही इस बग्वाल को मनाया था। तब से इगास बग्वाल के दिन भैला खेलने की परंपरा शुरू हुई।
इसके अलावा कुछ लोग इसकी कहानी को महाभारत से भी जोड़ते हैं। कहा जाता है कि एक बार दीपावली के दिन पांडवों में भीम मौजूद नहीं थे। वो एक दुष्ट का संहार करने के लिए गए थे। आखिरकार जब भीम वापस लौटे तो पांडवों ने इस दिन दीपावली मनाई थी। गढ़वाल के कई इलाकों में इगास बग्वाल को भीम दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। इगास बग्वाल के दिन तिल की सूखी लकड़ियों से भैला बनाया जाता है और स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। ये वीडियो देखिए