image: Mohan singh latwal the legend farmer of uttarakhand

देवभूमि के ‘बाहुबली’ दादा, 80 साल की उम्र, पहाड़ काटकर खेत बनाया और रचा इतिहास

Nov 2 2017 2:28PM, Writer:गीता

कहते हैं कि अगर आपने मान लिया कि आप बूढ़े हो गए तो आपका मनोबल गिरने लगता है। उम्र को कभी भी खुद पर हावी होने ना दें, इससे शरीर में हौसला बरकरार रहता है। ऐसे ही उत्तराखंड के एक गांव में रहने वाले दादाजी भी हैं। इनकी उम्र 80 साल की हो गई है, लेकिन अपने हौसले के आगे उन्होंने बुढ़ापे को मात दी है। उनके भीतर उबाल मार रहा जुनून उन्हें सोने नहीं देता और दिन रात नए काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब ये दादा अपनी धुन में चलते हैं तो बड़े से बड़े पहाड़ भी इसके आगे हार जाते हैं। अल्मोड़ा के सुदूर स्याहीदेवी गांव के रहने वाले मोहन सिंह लटवाल दादा के बारे में ये ही कहा जाता है। हर बार उन्होंने अपनी मेहनत से युवाओं को नई प्रेरणा दी है। दादा कहते हैं कि अगर करना है तो अपने दम पर करो, किसी के सामने हाथ फैलाकर कब तक बैठे रहोगे। अब जरा इसके संघर्ष की कहानी जानिए।

मोहन सिंह लटवाल दादा की फौलादी धुन ऐसी कि इन्होंने एक पहाड़ी को फावड़े, गैंती और घन की मदद से पाट दिया। हैरानी तो तब होती है, जब इस जगह पर आज फसल लहलहा रही है। जी हां दादा जी ने पहाड़ को काटकर खेत बनाया। सिर्फ खेत नहीं बल्कि एक उपजाई जमीन बनाया। कभी सूरज की गर्भी के थपेड़े खा रही ये बंजर जमीन और फसलों से लहलहा रही है। मोहन सिंह लटवाल का पहाड़ी को काटकर खेत बनाने का जुनून ही था, जिसने इस जगह का पूरा नजारा ही बदल दिया। पहाड़ को काटने में उन्होंने ज्यादा वक्त भी नहीं लगाया। सिर्फ दो साल के भीतर ही पहाड़ को अपने कदमों पर झुका दिया। सलाम करने मन करता है कि जांबाज हौसलों वाले इस दादा को, जो रुके नहीं, थके नहीं, बस आगे बढ़ते गए और युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए। अब जरा ये भी जान लीजिए कि ये सब कैसे संभव हुआ।

मोहन सिंह लटवाल दादा ने गैंती, फावड़े और घन से पहाड़ी काटा। इसके बाद खेत बनाने का काम शुरू किया। मोहन दादा रोज चट्टान का कुछ हिस्सा तोड़ते थे। वक्त के साथ-साथ चट्टान वाला स्थान समतल होने लगे। इस मेहनत की दाद देंगे आप कि कई बार तो दादाजी ने दिन-रात भी खेत बनाने का काम किया गया। मेहनत रंग लाई। इस जमीन पर आज 80 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा खेत है। चट्टान तोड़ कर निकले 1.60 टन पत्थरों से दादाजी ने खेत की सुरक्षा के लिए दीवार बनाई। इसके बाद इसमें करीब तीन क्विंटल आलू और 6 क्विंटल मूली उगा डाली । साल 2005 में उन्हें जिले के श्रेष्ठ किसान का सम्मान भी मिल चुका है। स्थानीय लोग भी उनसे खेती के गुर सीख रहे हैं। एक बुजुर्ग ने गांव में ही रोजगार पैदा कर दिया और पलायन पर रोक लगा दी। क्या आप सलाम करेंगे इस महान दादा को ?


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