image: Madmaheshwar temple of uttarakhand

देवभूमि में बसे हैं धरती के सबसे जागृत महादेव, यहां शिव का नाभि पूजन होता है

Nov 6 2017 8:17AM, Writer:नितिका

शिवपुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने कुल-परिवार और सगोत्र बंधु-बाँधवों के वध के पाप का प्रायश्चित करने के लिए उत्तराखंड में तप करने आये थे। ये आज्ञा उन्हें वेदव्यास ने दी थी। पांडव स्वगोत्र-हत्या के दोषी थे। इसलिए भगवान शिव उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव ज्यों ही महिष (भैंसे) का रूप धारण कर पृथ्वी में समाने लगे, पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। महाबली भीम ने उनको धरती में आधा समाया हुआ पकड़ लिया। शिव ने प्रसन्न होकर पांडवों को दर्शन दिये और पांडव गोत्रहत के पाप से मुक्त हो गये। उस दिन से महादेव शिव पिछले हिस्से से शिलारूप में केदारनाथ में विद्यमान हैं। उनका अगला हिस्सा जो पृथ्वी में समा गया था, वह नेपाल में प्रकट हुआ, जो पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।

इसी प्रकार उनकी बाहु तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटाएँ कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। समुद्रतल से 3289 मीटर की ऊँचाई पर बना यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है। मंदिर से कहीं अधिक आकर्षक है यहाँ का प्राकृतिक परिवेश। एकदम हरी-भरी घाटी। दाहिनी ओर बर्फ से ढकीं पर्वत शृंखलाएँ। बायीं ओर लगभग एक कि.मी. चढ़कर देखें तो फूलों की छोटी-सी मनोरम घाटी या कह लें छत। उसके सामने चौखंभा पर्वत ऐसे दिखायी देता है मानो हम अपने हाथ थोड़े-से आगे बढ़ा लें तो उसे छू लें। धुएँ-से उठते बादलों की महीन चादर। गाढ़े श्वेत होते बादल। दूर तक चली जाती हरी-भरी धरती। धरती और आकाश का मिलना एक नये उत्सव की सृष्टि करता लगता है। इसी उत्सवी सौंदर्य के बीच ही शिव की इच्छा जगी होगी, हिमवान् की पुत्री पार्वती के साथ इस स्थान पर अपनी मधुचंद्ररात्रि मनाने की।

ऐसा माना जाता है कि मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनायी थी। प्रकृति से बड़ा कोई तीर्थ क्या होगा? इस तीर्थ के विषय में यह कहा गया है कि जो व्यक्ति भक्ति से या बिना भक्ति के ही मदमहेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान करता है, वह पिता की सौ पीढ़ी हले के और सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है- "शतवंश्या: परा: शतवंश्या महेश्वरि:। मातृवंश्या: शतंचैव तथा श्वसुरवंशका:।। तरिता: पितरस्तेन घोरात्संसारसागरात्। यैरत्र पिंडदानाद्या: क्रिया देवि कृता: प्रिये।।" यहां आकर आपको लगेगा कि सच में आप भगवान भोलेनाथ के घर में हैं। बेहतरीन नजारों और खूबसूरत वादियों में बसे यहां भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।


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