image: Basati bisht the jagar singer of uttarakhand

Video: देवभूमि की नारी शक्ति, पद्मश्री से सम्मानित पहली जागर गायिका, दुनिया करती है सलाम

Nov 14 2017 9:32PM, Writer:कपिल

उत्तराखंड यानी देवों की भूमि। इस देवभूमि में जो देवी देवताओं की आराधना दिल से करता है, उसे सम्मान, वैभव, यश और कीर्ति प्राप्त होती है। खासकर एक पहाड़ी महिला ने इस बात को साबित भी किया है। प्रतिभा का अतुलनीय भंडार, आंखों में सूर्य सी चमक और मन में विश्वास की असीमित सीमा को लेकर अपने साथ चलने वाली बसंती बिष्ट। लोक गायिका, जागर गायिका, बुलांदी नंदा और ना जाने किन किन सम्मानों से सम्मानित हो चुकी हैं उत्तराखंड की शान बसंती बिष्ट। कुछ वक्त पहले ही में बसंती बिष्ट को मध्यप्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान 2016-17 से नवाजा था। उत्तराखंड की लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए 6 जून 2017 को भोपाल में एक सम्मान समारोह हुआ था, वहां उन्हें सम्मानित किया गया। इससे पहले उन्हें पद्मश्री और तीलू रौतेली पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

बसंती बिष्ट को स्थानीय देवियों और देवताओं के जागरों के पारंपरिक गायन में महारथ हासिल है। यही नहीं पहाड़ की देवी नंदा समेत कई देवताओं के पारंपरिक जागरों के संरक्षण का श्रेय भी बसंती बिष्ट को जाता है। चमोली जिले के दुर्गम गांव ल्वाणी की रहने वाली बसंती बिष्ट ने ये कला कभी अपनी मां से सीखी थी। बसंती ने अपनी मां विरमा देवी से जागर गायन सीखा। जिस उम्र में महिलाएं खुद को घर की दहलीज के भीतर ही सीमित कर देती हैं। बसंती बिष्ट ने उस उम्र में पहली बार हारमोनियम संभाला। राज्य आंदोलन के दौर में उन्होंने जनगीत लिखे थे। क्या आप जानते हैं कि बसंती ने 40 साल की उम्र में पहली बार मंच पर जागर गाए। सामने बैठे श्रोता उनकी सुमधुर आवाज की तारीफ किये बिना नहीं रह पाए। बताया जाता है कि 32 साल की उम्र में वो अपने पति के साथ पंजाब चले गईं।

एक बार पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो संगीत सीखने की सलाह दी। पहले बसंती जी तैयार नहीं हुई, लेकिन बाद में उन्होंने सीखने का फैसला किया। हारमोनियम संभाला और विधिवत रूप से सीखने लगी। 40 वर्ष की उम्र में पहली बार वो गढ़वाल सभा के परेड ग्राउंड में सजे मंच पर जागरों की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंची। अपनी आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा। दर्शकों की तालियों ने उन्हें जो ऊर्जा दी , वो आज भी कायम है। सलाम पहाड़ की इस नारी को


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