कुमाऊं रेजीमेंट का वीर शहीद, जिसके सामने नहीं टिक पाए थे 2000 चीनी सैनिक
Nov 22 2017 8:57PM, Writer:अमित
भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजीमेंट की सी कम्पनी के 120 जवान अपने सेनानायक मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में भारत माता की रक्षा में तैनात थे। एक तरफ तेज बर्फीली हवाएं जवानों के शरीर में घुस शरीर को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी, दूसरी तरफ कुमाऊं रेजीमेंट के इस सेनानायक के अंदर की ज्वाला देश को बचाने के लिए भड़क रही थी। ठीक 18 नवंबर को 1962 को सुबह 4.35 बजे अचानक चीनी सैनिकों ने हमला बोल दिया। दिन उगा भी नहीं था और जवानों ने देखा कि कई सारी रोशनी उनकी तरफ बढ़ रही थी। जवानों ने अपनी बंदूकों की नाल उनकी तरफ आती रोशनियों की ओर खोल दी। लेकिन थोड़ी ही देर में मेजर शैतान सिंह को अंदाजा हो गया कि ये चीनी सैनिक नहीं बल्कि गल् में लालटेन लटाकाए हुए याक हैं। चीनी सेना के पास ये जानकारी थी कि भारतीय सैनिक टुकड़ी में सिर्फ 120 जवान हैं।
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चीनी सैनिक ये भी जानते थे कि भारतीय सेना के पास सिर्फ 400 राउंड गोलियां हैं। मेजर शैतान सिंह सब कुछ समझ गए थे। मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर स्थिति की जानकारी अपने अधिकारियों को दी और मदद मांगी लेकिन उस वक्त मदद मिलना असंभव था। अधिकारियों का आदेश दिया कि आप सेना की टुकड़ी को पोस्ट से पीछे हटा लें। लेकिन शैतान सिंह ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा कि मैं चीनी सेना का मरते दम तक मुकाबला करूंगा। अपने सेनानायक की बात जब जवानों ने सुनी तो वो भी तैयार हो गए। तुरंत प्लान बदला गया और कहा गया कि दुश्मन पर एक भी गोली खाली ना जाए और उनके ही हथियार छीनकर उन्हें मार दिया जाए। 120 बहादुर जवान 2000 चीनी सैनिकों से भिड़ गए। एक-एक सैनिक 20 - 20 चीनी सैनिकों को मारकर शहीद होता रहा। इस बीच मेजर भी घायल हो गए।
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उन्होंने कहा कि मुझे चट्टान के सहारे बिठाकर मशीनगन दुश्मन की तरफ तान दें और गन के ट्रिगर को रस्सी के सहारे उनके एक पैर से बांध दें। मेजर के दोनों हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। उनके पेट में गोलियां लगी थी और खून बह रहा था। लेकिन मेजर ने घाव के ऊपर कपड़ा बांधा और पोजीशन ले ली। मेजर चीनी सैनिकों से कब तक लड़ते रहे, कितनी देर लड़ते रहे और कब उनके प्राणों ने शरीर को छोड़ दिया, इस बात का किसी को नहीं पता। लेकिन जब तीन महीने बाद वहां मेजर के पार्थिव शरीर को लेने के लिए सेना आई, तो वो उसी पोजीशन में थे, जैसे दुश्मनों पर गोली बरसा रहे हों। सिर्फ 120 सैनिकों ने 1800 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। खुद चीनी सैनिकों ने भी मेजर के सम्मान में अपनी टोपियां वहां रख दी थी और अपनी राइफलें उल्टी गाड़ दी थी। इस अदम्य साहस और अप्रत्याशित वीरता के लिए कुमाऊं रेजीमेंट के इस वीर मेजर को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।