रामी बौराणी, उत्तराखंड में जब ‘सावित्री’ अवतार हुआ, जानिए पहाड़ की ये गौरवशाली गाथा
Nov 25 2017 3:59PM, Writer:शैलजा
उत्तराखंड में नारी की भूमिका पुरुषों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। खेतों में कमरतोड़ मेहनत करना, जंगलों में पशुओं के चारे के लिये भटकना और घर में बच्चों का पालन पोषन करना लगभग हर पहाड़ी स्त्री के जीवनचक्र में शामिल है। ये संघर्षपूर्ण जिन्दगी कुछ आसान लगती, अगर हर औरत को अपने पति का साथ मिलता। लेकिन पहाड़ के अधिकांश पुरुष रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिये अपने परिवार से दूर मैदानों में जाकर रहते हैं। कई दशकों से चली आ रही इस परिपाटी को अभी भी विराम नहीं लगा है। पति के इन्तजार में अपने यौवन के दिन गुजार देने वाली पहाड़ की इन स्त्रियों को लोक कथाओं में भी स्थान मिला है। बौराणी शब्द ’बहूरानी’ का अपभ्रंश है। रामी नाम की एक स्त्री एक गांव में अपनी सास के साथ रहती थी, उसके ससुर का देहान्त हो गया था और पति बीरू देश की सीमा पर दुश्मन से मुकाबला करता रहा।
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दिन, सप्ताह और महीने बीते, इस तरह 12 साल गुजर गये। बारह साल का ये लम्बा समय रामी ने जंगलों और खेतों में काम करते हुए, एक-एक दिन बेसब्री से अपने पति का इन्तजार करते हुए बड़ी मुसीबत से व्यतीत किया। बारह साल के बाद जब बीरू लौटा तो उसने एक जोगी का वेश धारण किया और गांव में प्रवेश किया। उसका इरादा अपनी स्त्री के पतिव्रत की परीक्षा लेने का था। खेतों में काम करती हुई अपनी पत्नी को देख कर जोगी रूपी बीरु ने रामी को अपने वश में करने की लाख कोशिशें की थी, लेकिन क्या मजाल कि वो अपने सतीत्व पर आंच आने देती। बीरू ने कई कोशिशें की, लेकिन एक भी कोशिश काम नहीं कर पाई थी। थोड़ी देर बाद जोगी के रूप में बीरू ने रामी से खाना मांगा। संत की सेवा करना पहाड़ी स्त्रियां धर्म मानती हैं। इसके बाद रामी मालू के पात में जोगी के लिए खाना लाई थी।
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इस पर जोगी बोला ये क्या ? मुझे क्या तुमने ऐरा-गैरा समझ रखा है? मैं पत्ते में दिये गये खाने को तो हाथ भी नहीं लगाउंगा। मुझे रामी के पति बीरु की थाली में खाना परोसो। इसके जवाब में रामी बोली कि नीच आदमी! अब तो तू निर्लज्जता पर उतर आया है। मैं अपने पति की थाली में तुझे खाना क्यों दूंगी? तेरे जैसे जोगी हजारों देखे हैं। तू अपना झोला पकङ कर जाता है या मैं ही इन्हें उठा कर फेंक दूँ? ऐसे कठोर वचन बोलते हुए उस पतिव्रता नारी ने सत् का स्मरण किया। रामी के सतीत्व की शक्ति से जोगी का पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा और उसके चेहरे पर पसीना छलक गया। वो झट से सामने खड़ी अपनी माँ के चरणों में जा गिरा। जोगी का चोला उतारता हुआ बोला। अरे माँ! मुझे पहचानो! मैं तुम्हारा बेटा बीरू हूँ। देखो मैं वापस आ गया। बेटे को अप्रत्याशित तरीके से इतने सालों बाद अपने सामने देख कर माँ हक्की-बक्की रह गई।
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उसने बीरु को झट अपने गले से लगा लिया। बुढिया ने रामी को बाहर बुलाने के लिये आवाज दी ‘ओ रामि देख तू कख रैगे, बेटा हरच्यूं मेरो घर ऐगे’। रामी भी अपने पति को देखकर भौंचक रह गयी. उसकी खुशी का ठिकाना न रहा, आज उसकी वर्षों की तपस्या का फल मिल गया था। इस तरह रामी ने एक सच्ची उत्तराखण्डी भारतीय नारी के पतिव्रत, त्याग और समर्पण की एक अद्वितीय मिसाल कायम की।