देवभूमि में फिर जाग उठे न्याय के देवता, 150 साल बाद इस गांव में तैयारियां शुरू
Nov 29 2017 9:58AM, Writer:कपिल
उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र के गांव खत कोटा-तपलाड़ के लिए आने वाला साल बेहद खास होने जा रहा है। इस गांव में 150 सालों के बाद चालदा देवता का स्वागत किया जाएगा। लोगों ने अभी से ही इसके लिए खास तैयारियां करनी शुरू कर दी है। अब आप ये भी जान लीजिए कि आखिर चालदा देवता कौन हैं। आपने "महासू" देवता का नाम सुना होगा। ये मंदिर एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानीय भाषा में इसे महासू यानी महाशिव कहा जाता है। चारों महासू भाईयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू है। जो कि भगवान शिव के ही रूप कहे जाते हैं। उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है।
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इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। आज भी महासू देवता के उपासक मन्दिर में न्याय की गुहार और अपनी समस्याओं का समाधान मांगते आसानी से देखे जा सकते हैं। ऐसे में करीब 150 साल बाद कोटा-तपलाड़ के लोगों को देव मेजबानी का मौका मिलने जा रहा है। मान्यता के अनुसार महासू देवता के चारों भाई बाशिक महासू, बोठा महासू, पवासी महासू व चालदा महासू का मूल मंदिर हनोल में है। इन्हीं में से चालदा देवता ने हिमाचल के सराजी मंदिर व बावर क्षेत्र के कोटी-बावर मंदिर में विराजने का फैसला लिया था। परंपरा और नाम के मुताबिक चालदा देवता एक स्थान पर ज्यादा वक्त तक नहीं ठहरते हैं। कहा जाता है कि चालदा देवता को भी न्याय का देवता माना जाता है।
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लगातार भ्रमण करते रहने वाले चालदा देवता हिमाचल, बंगाण, फतेह पर्वत और जौनसार-बावर क्षेत्र के प्रवास पर कुछ निर्धारित समय के लिए आते-जाते रहते हैं। बताया जा रहा है कि अभी तालदा देवता की पालकी नराया गांव में है। गांव में दो साल पूरे होने के बाद अब देव पालकी ने अपनी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए खत कोटा-तपलाड़ में प्रवेश करने की इच्छा व्यक्त की है।मंगलवार को लोगों ने देव पालकी के आगमन को लेकर विचार-विमर्श किया। निर्णय लिया गया कि देव पालकी 15 जून 2018 को नराया गांव से कोटा के लिए प्रस्थान करेगी। चालदा देवता की पालकी हमेशा चलती रहती है। ये पालकी जौनसार क्षेत्र के 24 खतों में बारी-बारी से जाती है। करीब 150 साल बाद कोटा तपलाड़ खत को मेजबानी का मौका मिल रहा है।