उत्तराखंड में कितनी भाषाएं बोली जाती हैं ? आज अपना गौरवशाली इतिहास भी जानिए
Dec 12 2017 6:52PM, Writer:आदिशा
आम तौर पर हर किसी को लगता है कि उत्तराखंड में सिर्फ गढ़वाली और कुमाऊंनी ही दो भाषाएं बोली जाती हैं। लेकिन यहां आपका ये जानना जरूरी है कि यहां का इतिहास कितनी भाषाओं का गवाह रहा है। सबसे पहले नंबर आता है कि गढ़वाली भाषा का। साल जिले पौड़ी, टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून और हरिद्वार गढ़वाली भाषी लोगों के मुख्य क्षेत्र हैं। इसके साथ ही कुछ इतिहासकार बताते हैं कि कुमांऊ के रामनगर क्षेत्र में भी गढ़वाली भाषा का असर देखा जाता है। कहा जाता है कि गढ़वाली आर्य भाषाओं के साथ ही विकसित हुई। इसके बाद इसने 11 या 12वीं सदी में अपना अलग स्वरूप धारण कर लिया था। गढ़वाली का अपना शब्द भंडार है जो काफी विकसित है। अब बात कुमाऊंनी भाषा की करते हैं। नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत और उधमसिंह नगर में कुमांउनी बोली जाती है।
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कुमाउंनी की कुल दस उप बोलियां हैं जिन्हें पूर्वी और पश्चिमी दो वर्गों में बांटा गया है। पूर्वी कुमाउंनी मेंकुमैया, सोर्याली, अस्कोटी और सीराली हैं। पश्चिमी कुमाउंनी में खसपर्जिया, चौगर्खिया, गंगोली, दनपुरिया, पछाईं और रोचोभैंसी शामिल हैं। अब बात जौनसारी भाषा की करते हैं। देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र को जौनसार भाबर कहा जाता है। यहां की मुख्य भाषा है जौनसारी। इसमें पंजाबी, संस्कृत, प्राकृत और पाली के कई शब्द मिलते हैं। इसके अलावा अगली भाषा है जौनपुरी। टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड में ये भाषा बोली जाती है। इसमें दसजुला, पालीगाड़, सिलवाड़, इडवालस्यूं, लालूर, छःजुला, सकलाना पट्टियां इस क्षेत्र में आती हैं। इसके अलावा अगला नंबर आता है रवांल्टी का। उत्तरकाशी जिले के पश्चिमी क्षेत्र को रवांई कहा जाता है। यहां गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक राईगढ़ स्थित था।
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इस वजह से इसका नाम रवांई पड़ा। यहां की भाषा को रवांल्टी कहा जाता है। भाषा विद और कवि महावीर रवांल्टा इस भाषा के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अगली भाषा है जाड़। उत्तरकाशी जिले के जाड़ गंगा घाटी में निवास करने वाली जाड़ जनजाति की भाषा भी उनके नाम पर जाड़ भाषा कहलाती है। उत्तरकाशी के जादोंग, निलांग, हर्षिल, धराली, भटवाणी, डुंडा, बगोरी में इस भाषा के लोग मिल जाएंगे। अगली भाषा है बंगाणी। उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले क्षेत्र को बंगाण कहा जाता है। इस क्षेत्र की मासमोर, पिंगल तथा कोठीगाड़ पट्टियों में ये भाषा बोली जाती है। इसके बाद मार्च्छा और तोल्छा का नंबर आता है। चमोली जिले की नीति और माणा घाटियों में रहने वाली भोटिया जनजाति मार्च्छा और तोल्छा भाषा बोलती है।
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इसके बाद नंबर जोहारी भाषा का आता है। ये भोटिया जनजाति की एक भाषा है जो पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी क्षेत्र में बोली जाती है। इसके अलाव एक और भाषा है थारू। कुमाऊं मंडल के तराई क्षेत्रों में थारू जनजाति के लोग रहते हैं। इस जनजाति के लोगों की अपनी अलग भाषा है जिसे उनके नाम पर ही थारू भाषा कहा गया। अगला नंबर है बुक्साणी भाषा का। कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक तराई की पट्टी में रहने वाली जनजाति की भाषा है बुक्साणी। काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, रामनगर, डोईवाला, सहसपुर, बहादराबाद, दुगड्डा, कोटद्वार जैसे इलाके इसमें शामिल हैं। अब नंबर आता है रंग ल्वू भाषा का। पिथौरागढ़ की धारचुला तहसील के दारमा, व्यास और चौंदास पट्टियों में रंग ल्वू भाषा बोली जाती है। आखिर में नंबर आता है राजी भाषा का। कहा जाता है कि राजी कुमांऊ के जंगलों में रहने वाली जनजाति थी। नेपाल की सीमा से सटे पिथौरागढ़, चंपावत और ऊधमसिंह नगर जिलों में इस जनजाति के लोग रहते हैं।