इंद्रमणि बड़ोनी: देवभूमि के महानायक, जिनकी आवाज में सत्ता हिला देने का दम था
Dec 24 2017 11:44AM, Writer:कपिल
स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी, ये वो नाम है जो उत्तराखंड की आत्मा में बसा है। आज अगर आप उत्तराखंड में एक अलग राज्य की हवा को महसूस कर रहे हैं तो ये इस तूफान की वजह से हो सका। 1994 का उत्तराखंड आन्दोलन, इसके सूत्रधार थे इंद्रमणि बडोनी। जुबान के पक्के, मजबूत इरादों वाले और सत्ता को हिलाकर रख देने वाले इस शख्स को आज नमन करें। 2 अगस्त 1994 का दिन उत्तराखंड कभी नहीं भूल पाएगा। पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने इंद्रमणि बडोनी आमरण अनशन पर बैठ गए। राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई थी। इसके बाद 7 अगस्त 1994 को इंद्रमणि बडोनी को जबरदस्ती मेरठ अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया था। इसके बाद उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल ले जाया गया था, जहां उन्हें सख्त पहरे में रखा गया। जनता की तरफ से भारी दबाव आया और तब जाकर 30वें दिन इंद्रमणि बडोनी ने अनशन खत्म किया। ये इंद्रमणि बडोनी की आवाज का ही दम था कि इसके बाद ये आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फैल चुका था।
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एक महानायक के पीछे उत्तराखंड की जनता लामबन्द हो गयी। इस वक्त बीबीसी की तरफ से एक रिपोर्ट छापी गई थी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘‘अगर आपने जीवित और चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड चले जायें। वहां गांधी आज भी विराट जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है।’’ ऐसे जीवट शख्स थे इंद्रमणि बडोनी। 1 सितम्बर 1994 को खटीमा हत्याकांड और 2 सितम्बर 1994 को मसूरी के हत्याकांडों ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी। इसके बाद इंद्रमणि बडोनी 15 सितम्बर को शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए मसूरी गए। पुलिस ने बडोनी को जोगीवाला में ही गिरफ्तार कर दिया। यहां से उन्हें सहारनपुर जेल भेजा गया। इस दमन की हर जगह कड़ी निन्दा की गई। दुबले-पतले, लम्बी दाढ़ी वाले शख्स इन्द्रमणि बडोनी अदम्य जिजीविषा वाले शख्स थे। उनका जन्म 24 दिसम्बर 1925 को टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गाँव हुआ था। बडोनी ने गाँव से शिक्षा शुरू की और फिर नैनीताल और देहरादून में शिक्षा प्राप्त की।
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19 साल की उम्र में उनकी शादी सुरजी देवी से हुई। जीवन की शुरुआत से इंद्रमणि बडोनी जीवट स्वभाव के थे। 1961 में वो गाँव के प्रधान बने। इसके बाद जखोली विकास खंड के प्रमुख बने। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग विधानसाभ सीट से जीतकर प्रतिनिधित्व किया। 1977 के विधान सभा चुनावों में वो निर्दलीय लड़े और विरोधियों की जमानतें जब्त करवायीं। 1980 में इंद्रमणि बडोनी उत्तराखंड क्रांति दल के सदस्य बन गये। 1988 में उन्होंने 105 दिनों की पैदल जन संपर्क यात्रा की। इस यात्रा में उन्होंने दो उत्तराखंड राज्य की अवधारणा को घर-घर तक पहुँचाया। उत्तराखंड के सपने को हकीकत में बदलने के लिए इन्द्रमणि बडोनी कड़़ा संघर्ष किया। उत्तराखंड के इस सच्चे सपूत ने 72 साल की उम्र में निर्णायक लड़ाई लड़ी। ऐतिहासिक जनान्दोलन के बाद भी इंद्रमणि बडोनी1994 से अगस्त 1999 तक उत्तराखंड राज्य के लिए जूझते रहे। लगातार संघर्ष, जनांदोलनों की वजह से उनकी तबीयत खराब होने लगी। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखंड का ये सपूत अनंत यात्रा की तरफ महाप्रयाण कर गया।