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जब उत्तराखंड आए थे स्वामी विवेकानंद, 117 साल पहले बताई थी देवभूमि के बारे में बड़ी बातें

Jan 18 2018 6:08PM, Writer:कपिल

देवभूमि उत्तराखंड, ऋषि मुनियों की तपस्थली, आराध्य देवताओं का घर या फिर महान विचारकों के लिए आध्यात्म का स्थान। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जिसने उत्तराखंड के बारे में बड़ी बातें ना बताई हों। किसी बड़ी हस्ती के लिए ये धरा ध्यान और योग की भूमि है, किसी के लिए ये वीरों की भूमि है, किसी के लिए ये देवों की धरती है, तो किसी के लिए आध्यात्मिक सुख पाने का जरिया है। इस धरा पर आने से स्वामी विवेकानंद खुद को रोक नहीं पाए थे। ये बात 117 साल पुरानी है। 117 साल पहले 18 जनवरी के दिन युगनायक स्वामी विवेकानंद ने उत्तराखंड के चंपावत की धरती को प्रणाम किया था और यहां कदम रखा था। 18 जनवरी 1901 को स्वामी विवेकानंद उत्तराखंड के चंपावत आए थे। उस वक्त स्वामी विवेकानंद ने उत्तराखंड के बारे में कई बातें बताई थी।

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उनके लिए भी ये धरा देवभूमि थी, इसी वजह से उन्होंने यहां ध्यान केंद्रित किया था। इसके साथ ही उन्होंने उन्होंने उत्तराखंड में आध्यात्म के विषय पर चर्चा की थी। उत्तराखंड के नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि युगों युगों तक ये धरती दुनिया के लिए आध्यात्म का केंद्र बन सकती है। इसे लेकर भी उन्होंने लोगों से विस्तार में बातचीत की थी। स्वामी विवेकानंद की ये यादें पुस्तक 'युगनायक विवेकानंद' भाग-तीन के हिमालय की अंतिम यात्रा खंड में बताई गई हैं। दरअसल उस दौरान अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक कैप्टन सेवियर का निधन हो गया था। इसके बाद स्वामी विवेकानंद उनकी पत्नी को सांत्वना देने के लिए चंपावत में आए थे। उस दौरान स्वामी विवेकानंद ने चंपावत स्थित जिला पंचायत के डाक बंगले में रात को विश्राम किया था। कैप्टेन सेवियर को स्वामी विवेकानंद का परम शिष्य कहा जाता था।

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वो चंपावत में अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक भी थे। ब्रिटिशर्स होने के बाद भी कैप्टन सेवियर स्वामी विवेकानंद के परम शिष्य थे। जब केप्टेन सेवियर का देहावसान हुआ था तो स्वामी विवेकानंद पेरिस की यात्रा पर थे। वो स्वदेश लौटे तो उन्हें ये खबर मिली। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड आने का फैसला लिया था। 27 दिसंबर 1900 को स्वामी विवेकानंद कोलकाता से चले थे। 29 दिसंबर को वो काठगोदाम पहुंचे। काठगोदाम में ठहरने के बाद वो डोली से अद्वैत आश्रम की ओर रवाना हुए थे। कहा जाता है कि इस बीच रास्ते में बारिश होने लगी थी और बर्फबारी भी होने लगी। इसकी परवाह न करते हुए स्वामी विवेकानंद पहाड़पानी, मौरानौला और धूनाघाट के रास्ते होते हुए अद्वैत आश्रम पहुंचे। वापसी की यात्रा 18 जनवरी को शुरू हुई और चंपावत में उन्होंने जिला पंचायत के डाक बंगले में रात्रि विश्राम किया था।


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