पौड़ी गढ़वाल का सपूत, संसद में उठाएगा उत्तराखंड की आवाज
Mar 12 2018 10:30AM, Writer:कपिल
पौड़ी गढ़वाल ने एक बार फिर से देश को एक बड़ा चेहरा दिया है। नाम है अनिल बलूनी, जो उत्तराखंड से राज्यसभा जाने वाले हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले के नकोट गांव के रहने वाले अनिल बलूनी जब दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे थे, तो इसी दौरान वो आरएसएस के करीब आए थे। धीरे-धीरे वो संघ में रचते और बसते चले गए। इस बीच वो बीजेपी के कद्दावर नेता सुरेंद्र सिंह भंडारी के संपर्क में आए थे। भंडारी को बिहार का राज्यपाल बनाया गया तो बलूनी उनके ओएसडी बनकर पटना चले गए। इसके बाद भंडारी गुजरात के राज्यपाल बने तो बलूनी भी उन्हीं के साथ गुजरात चले गए। बलूनी जिस दौरान गुजरात में थे, उसी दौरान वहां सीएम नरेंद्र मोदी का दौर चल रहा था। इस वजह से अनिल बलूनी बीजेपी गुजरात में भी काफी सक्रिय रहे। इसके बाद बलूनी उत्तराखंड लौट आए।
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2002 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कोटद्वार सीट से कैंडीडेट बनाया। किस्मत ने साथ नहीं दिया और उनका नामांकन रद कर दिया गया। बलूनी हारे नहीं, उन्होंने इलेक्शन कमीशन के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी और फैसला उनके पक्ष में गया। साल 2005 में हुए उपचुनाव में बलूनी फिर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गए। 2014 में केंद्र में बीजेपी सरकार आई तो बलूनी को भी बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी गई। उन्हें पार्टी ने नेशनल स्पोक्स पर्सन और बाद में नेशनल मीडिया कोर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी। अब उत्तराखंड से खाली हुई एक राज्यसभा सीट के लिए अनिल बलूनी का चयन हुआ है। उन्हें राज्यसभा सीट का प्रत्याशी बनाया गया। बलूनी का कहना है कि इसके लिए वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आभारी रहेंगे।
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बीजेपी का कहना है कि अनिल बलूनी को उत्तराखंड की स्थिति की अच्छी जानकारी है और इन समस्याओं को वो संसद में उठाएंगे। विधानसभा में बीजेपी का तीन-चौथाई बहुमत है, ऐसे में बलूनी की जीत निश्चित है। कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी न उतारने की घोषणा पहले ही हो चुकी है, यानी साफ है कि बीजेपी प्रत्याशी का निर्वाचन निर्विरोध ही होगा। इससे पहले राज्यसभा सीट के लिए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के नाम भी सामने आ रहे थे। इन तमाम दिग्गजों की मौजूदगी में अनिल बलूनी ने बाजी मार ली। केंद्रीय नेतृत्व पर पकड़ और उत्तराखंड का होना ही बलूनी के पक्ष में गया है। उनकी छवि अब तक निर्विवाद रही है। 46 साल के बलूनी उन नेताओं में शुमार किए जाते हैं, जिन्होंने बहुत ही कम वक्त में राजनीति में अपना अलग मुकाम बनाया है।