उत्तराखंड में विलुप्त होने की कगार पर दुर्लभ 16 वनस्पतियां
Apr 4 2018 12:23PM, Writer:रूचि रावत
देवभूमि उत्तराखंड में पेड़ पौधों की सैकड़ों ऐसी प्रजातियां हैं जो पर्यावरण संतुलन के लिए तो आवश्यक हैं ही, साथ ही आयुर्वेद में भी अपना अलग स्थान रखती हैं। वर्तमान में पृथ्वी का पर्यावरण संतुलन बहुत कुछ उत्तराखंड जैसे ही ग्रीन बेल्ट वाले भू-भागों पर निर्भर है। भारतीय वनस्पति विभाग द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में कुछ चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आयी हैं जिनके अनुसार उत्तराखंड में पायी जाने वाली दुर्लभ 16 वनस्पतियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। बताया जा रहा है कि इन वनस्पतियों के अनियंत्रित विदोहन के कारन यह स्थिति उत्पन्न हुई है और यही इसकी मुख्य वजह है। दुर्लभ वनस्पतियों की ऐसी प्रजातियों को बचाने और संवर्धन करने का काम वन प्रभागों के जरिये होगा। जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड प्रदेश में 71 फीसद भू-भाग पर वन हैं। परन्तु उत्तराखंड में इन दुर्लभ वनस्पतियों के अनियंत्रित विदोहन के चलते 16 दुर्लभ वानस्पतिक प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
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इन दुर्लभ 16 वनस्पतियों को जैव विविधता अधिनियम-2002 की धारा 38 के तहत संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल कर दिया गया है। जाहिर है इससे चिंतित सरकार ने अब इन दुर्लभ वनस्पतियों को सुरक्षित रखने और इनके संरक्षण तथा संवर्धन करने के उद्देश्य से वन प्रभागों की प्रबंध योजनाओं के जैव विविधता संरक्षण कार्यवृत्त में शामिल करने का निश्चय किया है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की इस ताजा रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड प्रदेश में आवृत्तजीवी (पुष्पीय) वनस्पतियों, जोकि उच्च हिमालयी क्षेत्र में पायी जानती हैं, की 4700 प्रजातियां हैं। इसके साथ ही उत्तराखंड के वन प्रभागों की वन प्रबंध योजनाओं में 920 प्रजातियां भी शामिल की गई हैं, जिनमें कई वनस्पतियां औषधीय महत्व की भी हैं और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल होती हैं। इन वनस्पतियों का अनियंत्रित विदोहन होने के कारण इन वनस्पतियों पर आस्तित्व का संकट गहरा गया है।
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इस पूरे मामले में वन विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में है। दुर्लभ वनस्पतियां जिनका इस्तेमाल मानव हित में भी होता हो, को सहेज कर रखना और ऐसी वनस्पतियों के संरक्षण तथा संवर्धन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व वन प्रभाग का है। जाहिर है ऐसी वानस्पतिक प्रजातियों के विलुप्त होने की दशा में भी जिम्मेदारी वन प्रभाग की ही होगी। साफ़ तौर पर वजह वन प्रभाग के सुस्त और ढुलमुल रवैये के कारण दुर्लभ और महत्वपूर्ण 16 वानस्पतिक प्रजातियां संकट में आ गई हैं। वैसे कहा जा रहा है कि अब इनके संरक्षण-संवर्धन के लिए प्रक्रिया प्रांरभ कर दी गई है, परन्तु ऐसी नौबत आने के बाद ही प्रक्रिया क्यों प्रारम्भ की जाती है... यह बात समझ से परे है। संकटग्रस्त वानस्पतिक प्रजातियों में अतीस, दूध अतीस, इरमोसटेचिस (वन मूली), कड़वी, इंडोपैप्टाडीनिया (हाथीपांव), पटवा, जटामासी, पिंगुइक्यूला (बटरवर्ट), थाकल, टर्पेनिया, श्रेबेरा (वन पलास), साइथिया, फैयस, पेक्टीलिस व डिप्लोमेरिस (स्नो आर्किड), मीठा विष आदि प्रजातियां हैं।