कभी 5 किमी पैदल चलकर स्कूल जाते थे मंगेश घिल्डियाल, विरासत में मिला संघर्ष और त्याग
May 7 2018 1:35PM, Writer:कपिल
जब बात उत्तराखंड के जिलाधिकारियों की आती है, तो कुछ गिने चुने नाम उंगलियों पर आते हैं। उन्हीं में से एक नाम हैं मंगेश घिल्डियाल। रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश की कहानी युवाओं के लिए सफलता का मूलमंत्र है। विरासत में मिले संघर्ष और त्याग ने उन्हें मजबूत बनाया, परिस्थियों से लड़ना सिखाया। ये ही वजह है कि आज भी मंगेश घिल्डियाल जमीन से जुड़े अधिकारी हैं। मंगेश घिल्डियाल का जन्म पौड़ी के धुमाकोट तहसील के डांडयू गांव में हुआ था। पिता प्राइमरी में शिक्षक और माता गृहणी हैं। शुरुआती पढ़ाई गांव के ही प्राइमरी स्कूल से हुई। इसके बाद आगे की पढ़ाई का वक्त आ गया। सबसे नजदीक जो स्कूल थ, वो गांव से पांच किलोमीटर दूर था। इसलिए रोजाना पांच किलोमीटर पैदल चलकर मंगेश घिल्डियाल ने शिक्षा हासिल की।
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राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय पटोटिया से उन्होंने आगे की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई राजकीय इंटर कॉलेज रामनगर से पूरी की। इसके बाद पीजी कॉलेज रामनगर से उच्च शिक्षा हासिल की। इसके बाद डीएसबी कैंपस नैनीताल से उन्होंने Msc फिजिक्स से पूरा किया। पिता शिक्षक थे और सैलरी भी उतनी भी ज्यादा नहीं थी। भाई और बहन पढ़ाई कर रहे थे। ऊपर से परिवार पर आर्थिक भार। परिस्थितियां ऐसी हुई कि नौकरी करना जरूरी हो गया। इसके बाद मंगेश ने गेट का पेपर दिया। सलेक्शन होने के बाद इंदौर से एमटेक करने के लिए चले गए। लेजर साइंस से एमटेक करने के बाद 2006 में डीआरडीओ में उनकी तैनाती हो गई। साइंटिस्ट की नौकरी तो मिल गई लेकिन दिल में सिविल सर्विसेज का ख्वाब पाले हुए थे।
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मंगेश घिल्डियाल की पहली पोस्टिंग देहरादून में आईआईआरडी लैबोरेट्री में हुई। यहीं से उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी करना शुरू कर दिया। मेहनत करते रहे और पहली बार में 131वीं रैंक के साथ आईपीएस में सलेक्शन हो गया। आज मंगेश रुद्रप्रयाग जिले की कमान संभाल रहे हैं। इससे पहले बागेश्वर जिले में वो अपनी सेवाएं दे चुके हैं। हर बार मुश्किलों को पार कर वो आगे बढ़ते रहे। आज मंगेश अपने कामों की वजह से जनता के बीच लोकप्रिय हैं। जमीन से जुड़े मंगेश हर मूलभूत समस्या के समाधान की बात करते है। गांव वालों से सीधा संपर्क साधते हैं और हर समस्या का निराकरण करते हैं। बच्चों की शिक्षा मंगेश के लिए पहला कर्तव्य है। रुद्रप्रयाग जिले में वो बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं।