उत्तराखंड को ही क्यों कहा जाता है भगवान् शिव का घर... 2 मिनट में जानिए पंचकेदारों की शक्ति
May 14 2018 12:46AM, Writer:ईशान
सनातन हिन्दू संस्कृति और धर्म में उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान शिव का तो यह सबसे प्रिय स्थल है। पूरे विश्व और उत्तराखंड में भी भोले भंडारी के कई मंदिर हैं और इन सभी में पंचकेदार सर्वोपरि हैं। पंचकेदार का हिन्दू शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में बड़ा ही महात्म्य माना गया है। श्री केदारनाथ उतराखंड का सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय शिवधाम है परन्तु उत्तराखंड में ऐसे चार केदार और भी हैं जिन सभी का धार्मिक महत्व केदारनाथ के बराबर है। ऐसी आस्था है कि इन सभी धामों के दर्शन और पूजा अर्चना से मनुष्य की मनोकामना पूर्ण होती है। पंचकेदारों में श्री केदारनाथ, तुंगनाथ महादेव, रूद्रनाथ, श्री मद्महेश्वर एवं कल्पेश्वर धामों को माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव के ये चार स्थान श्री केदारनाथ के ही भाग हैं। शिवपुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने कुल-परिवार और सगोत्र बंधु-बाँधवों के वध के पाप का प्रायश्चित करने के लिए यहाँ तप करने आये थे।
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यह ज्ञान उन्हें वेदव्यास ने दिया था। पांडव स्वगोत्र-हत्या के दोषी थे। इसलिए भगवान शिव उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव ज्यों ही महिष (भैंसे) का रूप धारण कर पृथ्वी में समाने लगे। कहते हैं इसी समय पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। महाबली भीम ने उनको धरती में आधा समाया हुआ पकड़ लिया और दर्शन देने की कामना करने लगे। भगवान शिव ने आखिरकार पांडवों को दर्शन दिये और पांडव गोत्रहत्या के पाप से मुक्त हो गये। उस दिन से महादेव शिव का पिछला हिस्सा शिलारूप में केदारनाथ में विद्यमान है। उनका अगला हिस्सा जो पृथ्वी में समा गया था, वह नेपाल में प्रकट हुआ और पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार उनकी बाहु तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटाएँ कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इस प्रकार पंचकेदार स्थापित हुए। आगे जानते है भगवान शिव के पंच केदारों के बारे में...
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1.केदारनाथ –

पंचकेदारों में प्रथम केदारनाथ हैं। केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3583 मीटर की ऊंचाई पर है। इसे पंच केदार में से प्रथम माना गया है। पुराणों में वर्णन के अनुसार महाभारत का युद्ध खत्म होने पर अपने ही कुल के लोगों का वध करने के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वेदव्यास जी के कहने पर पांडवों ने यहीं पर भगवान शिव की उपासना की थी। महिषरूपधारी भगवान शिव का पृष्ठभाग यहां शिलारूप में स्थित है।
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2.मद्महेश्वर -

मद्महेश्वर मंदिर समुद्र तल से 3490 मीटर की ऊंचाई पर है। इन्हें द्वितीय केदार माना गया है। यह ऊखीमठ से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां महिषरूपधारी भगवान शिव की नाभि लिंग रूप में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यही पर मनाई थी। यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
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3.तुंगनाथ –

श्री तुंगनाथ को पंच केदार में तृतीय माना गया है। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। केदारनाथ के बद्रीनाथ जाते समय मार्ग में यह क्षेत्र पड़ता है। यहां पर भगवान शिव की भुजा शिला रूप में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं पांडवों ने करवाया था। भगवान तुंगनाथ जी का मंदिर पंचकेदारों में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित है।
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4.रुद्रनाथ –

यह पंच केदार में चतुर्थ केदार हैं। रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव का मुख स्थित हैं। तुंगनाथ से रुद्रनाथ-शिखर दिखाई देता है। रुद्रनाथ मंदिर पहाड़ की एक गुफा में स्थित होने के कारण यहां पहुंचने का मार्ग बेदह दुर्गम है। यहां पंहुचने का एक रास्ता हेलंग (कुम्हारचट्टी) से भी होकर जाता है।
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5.कल्पेश्वर–

कल्पेश्वर महादेव पंच केदार का पांचवा क्षेत्र कहा जाता है। कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। पंचकेदारों में इस स्थान को उसगम के नाम से भी जाना जाता है। यहां के गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।