उत्तराखंड का सबसे प्राचीन वंश...जानिए.. देवभूमि में सबसे पहले कौन रहते थे
May 23 2018 2:10PM, Writer:मिथिलेष नौटियाल
वो शारीरीक रूप से काफी मजबूत, लंबे और गठीले शरीर वाले जैसे कोई योद्धा होता है। उनकी आंखें भूरी या नीले रंग की होती और आंखों में चमकता तेज किसी प्रभावशाली व्यक्तित्व का परिचय देता था। उनकी उंगलियों में शंख जैसी संरचना होती थी। वो देवभूमि के सबसे प्राचीन वंशज थे। कुछ कहानियां सुनकर, पढ़कर और देखकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आज किसी खबर की पड़ताल करने के लिए बस यूं ही इंटरनेट और किताबों को सर्च कर रहा था, तो मेरी नजर एक ऐसे लेख पर गई, जहां उत्तराखंड के सबसे प्राचीन वंश के बारे में कुछ जानकारियां दी गई हैं। ये जानकारियां पूरी हैं या नहीं, ये तो मुझे नहीं पता लेकिन मन हुआ कि आप तक इसे पहुंचाया जाए। यहां अगर कोई भूल चूक हुई हो, तो आपसे माफी भी चाहूंगा। सबसे पहले मैंने एक किताब देखी ‘garhwal rahasya: people in blue eyes’।
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हालांकि ये किताब मान्यताओं और कल्पनाओं पर आधारित भी है। लेकिन मन में एक सवाल उठा कि कल्पनाएं भी तो इंसानी दिमाग की देन है। बिपिन सिंह की इस किताब में कुछ ऐसी बातें लिखी गई हैं, जो रौंगटे खड़े करती हैं। हमारे पूर्वजों की कहानियां, बाण और भूतों की टोली की कहानियों में काफी वास्तविकता भी नज़र आती है। इस किताब में बताया गया है कि उत्तराखंड में सबसे पहले जो लोग रहते थे, वो पानस वंश के थे। शायद पानस वंश का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पृथ्वी का इतिहास है। लेकिन पानस वंश के लोगों के भी शायद इस बात की सटीक जानकारी नहीं है कि उनका वंश कबसे शुरू हुआ। बताया गया है कि पानस वंश के लोग गढ़वाल क्षेत्र से धीरे धीरे दुनियाभर में चले गए। गढ़वाल के किस क्षेत्र में पानस घाटी थी, इस बात की भी कोई सटीक जानकारी नहीं।
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हो सकता है कि आपके और हमारे बीच कोई उसी वंश का हो और हमें इस बात की जानकारी भी ना हो। इस बीच एक और वेबसाइट studyfry.com पर गई। इसमें बताया गया है कि उत्तराखंड का इतिहास पौराणिक काल जितना पुराना हैं । उत्तराखंड का उल्लेख प्रारम्भिक हिन्दू ग्रंथों में भी मिलता हैं, जहाँ पर केदारखंड और मानसखंड का जिक्र किया गया हैं। वर्तमान में इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता हैं। लोककथाओं के आधार पर पाण्डव यहाँ पर आये थे और महाभारत और रामायण की रचना यहीं पर हुई थी। जाहिर सी बात है कि प्राचीन काल से यहाँ मानव निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद इस क्षेत्र के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। अगर आपको भी इस बारे में कुछ और जानकारियां हों तो हमें जरूर भेजिएगा।