Video: किशन महिपाल की आवाज में सुनिए...पहाड़ का दर्द बयां करती ये गढ़वाली गज़ल
May 25 2018 7:40PM, Writer:कपिल
साख्यों बटी जम्युं ह्युं..जम्युं ह्युं अब कब गाललो..यो हिमालय अपुड़ी पिडा कब ब्वाललो...रसकस माटो पाणी, सभि धाणी बोगी गेनी... अब यो डालु केपर अंग्वाल ब्वाटलो। सब तो अपना दर्द सुना रहे हैं, आखिर वो हिमालय अपनी पीड़ा कब बताएगा ? पहाड़ की पीड़ा और पलायन का दर्द...चाहे वो अपने हों, या फिर पहाड़ के...सब कुछ तो बह गया, अब बचा क्या है ? इन शब्दों को बेहतर गढ़वाली गज़ल में पिरोने में किशन महिपाल काफी कामयाब हो पाए हैं। खास तौर पर मदन ढुकलान ने गढ़वाली शब्द संपदा को खुद में सहेज कर रखा हुआ है, जिसकी तारीफ करनी होगी। अगर आप पहाड़ के बाशिंदे हैं , चाहे आप बाहर रह रहे हैं या फिर पहाड़ में ही... इस दर्द को अच्छी तरह से समझ सकेंगे। अगर आप पहाड़ में लगातार बज रहे डीजे और पार्टी के गीतों से बोर हो गए हैं, तो ये गढ़वाली गज़ल आपके लिए है।
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पांडवाज़ के ईशान डोभाल ने संगीत के जरिए इसे एक अलग रूप देने की कोशिश की है। किशन महिपाल की आवाज और सुरों में बदलाव की मीठी बयार है, जो साबित कर रही है कि वो सिर्फ एक ही तरह के गीत के महारथी नहीं हैं। यूं तो पहाड़ों के दर्द और पहाड़ के वासियों की पीड़ा पर अब तक कई तरह के गीत बन चुके हैं। लेकिन किशन महिपाल का ये गीत ‘पहाड़ की पाती’ की तरह है। वो पाती, जो आपको हर वक्त-हर पल पहाड़ की अनंत बैचेनी को समझाने की कोशिश करेगी। आइए कुछ वक्त इस गीत के नाम कर लेते हैं। देखिए।