image: Vc gabar singh negi story

शहीद गबर सिंह नेगी...चीते की चाल, बाज़ की नजर और अचूक निशाने वाला योद्धा !

Jun 8 2018 1:06PM, Writer:मिथिलेष नौटियाल

21 अप्रैल 1895 का दिन, उत्तराखंड के टिहरी जिले के चंबा में हमेशा की तरह सूरज उगा था। लेकिन ये सूरज एक नई चमकदार और ओजस्वी रोशनी के साथ आया था। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र को एक गढ़नायक मिला था। हाथों में ताकत, दिल में जोश, खून में उबाल और मातृभूमि के लिए हर वक्त प्राणों को न्योछावर कर देने का माद्दा। ऐसा बलवान, शौर्यवान था ‘गबरू’। जी हां बचपन में प्याज से उसे गांव वाले गबरू ही करते थे। लेकिन गांव वालों को क्या पता था कि गबरू ने अपने दिल में कोई और ही ख्वाब पाले हैं। ‘सीना चौड़ा छाती का, वीर सपूत हूं माटी का’ कहते हैं कि गबरू को ये गीत काफी पसंद था। धीरे धूरे गबरू जवान हुआ और देश की सेना के लिए काम करने का जज्बा और ज्यादा उफान मार रहा था। जिस उम्र में बच्चे अपने पैरों पर सही ढंग से खड़े नहीं हो पाते, उस उम्र में ही गबर सिंह नेगी देश की की सेना में भर्ती हो गए।

यह भी पढें - उत्तराखंड शहीद: जिसके कपड़ों पर आज भी होती है प्रेस, सेवा में लगे रहते हैं 5 जवान !
39 गढ़वाल राइफल। ये वो राइफल है, जिसमें गबर सिंह नेगी ने हुंकार भरी थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गबर सिंह नेगी 39 वें गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में राइफलमैन थे। सिर्फ 21 साल की उम्र में बाज सी नजर, चीते सी रफ्तार और अचूक निशाना, ये गबर सिंह नेगी की पहचान थी। केवल 21 साल की उम्र में गबर सिंह नेगी नेव चापेल के युद्ध में हमला बल का हिस्सा बने। मार्च, 1915 में वो इस युद्ध को लड़ने गए थे। उस सैन्य बल में आधे से ज्यादा सैनिक भारतीय थे। खास बात ये है कि ये पहली बड़ी कार्रवाई थी, जब भारतीय सेना एक इकाई के रूप में ल‌ड़ी था। हालांकि भारतीय सेना को काफी क्षति पहुंची लेकिन इसके बाद भी गबर सिंह नेगी सबसे बड़े दुश्मन की एक लोकेशन लेने में कामयाब रही। जैसे ही ये लोकेशन मिली तो बिना वक्त गंवाए दुश्मन को ढेर कर दिया गया।

यह भी पढें - पहाड़ी पराक्रम: शहीद जसवंत सिंह रावत...300 चीनी सैनिकों को मारकर शहीद हुआ था ये योद्धा
इस युद्ध के दौरान उनकी वीरता के कारण ही गबर सिंह नेगी को मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही गबर सिंह नेगी को एक प्रशस्ति पत्र भी मिला था। इसमें लिखा गया है कि ‘’10 मार्च, 1915 को नेव चापेल में विशिष्ट बहादुरी के लिए गबर सिंह नेगी को जाना जाएगा। इसके साथ ही इसमें लिखा गया है कि एक हमले के दौरान, राइफलमैन गबर सिंह नेगी दुश्मन के मुख्य मोर्चे में घुसे और हर बाधा को पार करने वाले पहले व्यक्ति थे। इस वजह से दुश्मन पीछे हटकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा। इस कार्रवाई के दौरान वे वीरगती को प्राप्त हो गए। गबर सिंह नेगी को नेव चापेल स्मारक पर श्रद्धांजली दी गई है। चम्बा में हर साल अप्रैल में गबर सिंह नेगी मेला आयोजित किया जाता है।


  • MORE UTTARAKHAND NEWS

View More Latest Uttarakhand News
  • TRENDING IN UTTARAKHAND

View More Trending News
  • More News...

News Home