उत्तराखंड के सपूत पंडित नैनसिंह रावत..दुनिया को एशिया की जानकारी इन्होंने दी थी
Jun 13 2018 4:39PM, Writer:कपिल
अगर तिब्बत के पठारों और पहाड़ी इलाके में दूरी नापने और मैप तैयार करने का काम आपको दिया जाए तो आप ये ही कहेंगे कि ये नामुमकिन है। लेकिन पंडित नैन सिंह रावत ने आज से करीब 150 साल पहले अपने कदमों से मध्य एशिया को नापकर इस क्षेत्र का मैप तैयार कर दिया था। चाहे पहाड़ चढ़ना हो या उतरना हो या फिर समतल मैदान हो, पंडित नैन सिंह साढ़े 33 इंच का एक कदम रखते। उनके हाथों में मनकों की एक माला होती थी। एक माला में 108 मनके होते हैं लेकिन वह अपने पास 100 मनके वाली माला रखते थे। वो 100 कदम चलने पर एक मनका गिरा देते और 2000 कदम चलने के बाद वह उसे एक मील मानते थे। इस तरह से 10,000 कदम पूरे होने पर सभी मनके गिरा दिये जाते। यहां पर 5 मील की दूरी पूरी हो जाती थी। इस महान खोजकार ने ही पहली बार दुनिया को ये बताया कि तिब्बत की सांगपो और भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र असल में एक ही नदी है। नैन सिंह रावत को गूगल द्वारा डूडल बनाकर भी सम्मान दिया गया था।
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सिंधु, सतलुज और सांगपो के उदगम स्थल और तिब्बत में उसकी स्थिति से भी विश्व को पंडित नैन सिंह ने ही अगवत कराया था। वो पहले व्यक्ति जिन्होंने तिब्बत की राजधानी ल्हासा की सही स्थिति और ऊंचाई बतायी थी। उन्होंने तिब्बत की कई झीलों का नक्शा तैयार किया जिनके बारे में इससे पहले कोई नहीं जानता था। पंडित नैन सिंह रावत का जन्म पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील स्थित मिलम गांव में 21 अक्तूबर 1830 को हुआ था। उनके पिता अमर सिंह को लोग लाटा बुढा के नाम से जानते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हासिल की लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जल्द ही पिता के साथ भारत और तिब्बत के बीच चलने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़ गये। इससे उन्हें अपने पिता के साथ तिब्बत के कई स्थानों पर जाने और उन्हें समझने का मौका मिला। उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी जिससे आगे उन्हें काफी मदद मिली। हिन्दी और तिब्बती के अलावा उन्हें फारसी और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था।
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इस महान अन्वेषक, सर्वेक्षक और मानचित्रकार ने अपनी यात्राओं की डायरियां भी तैयार की थी। उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकतर समय खोज और मानचित्र तैयार करने में बिताया। पंडित नैनसिंह के अलावा उनके भाई मणि सिंह और कल्याण सिंह और चचेरे भाई किशन सिंह ने भी मध्य एशिया का मानचित्र तैयार करने में भूमिका निभायी थी। इन्हें जर्मन भूगोलवेत्ताओं स्लागिंटवाइट बंधुओं एडोल्फ और राबर्ट ने सबसे पहले सर्वे का काम सौंपा था। नैन सिंह दो साल तक इन भाईयों से जुड़े रहे और इस दौरान उन्होंने मानसरोवर और राकसताल झीलों के अलावा पश्चिमी तिब्बत के मुख्य शहर गढ़तोक से लेकर ल्हासा तक का दौरा किया था। इस दौरे से लौटने के बाद नैनसिंह अपने गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक बन गये थे और यहीं से उन्हें पंडित नाम मिला। तब किसी भी पढ़े लिखे या शिक्षक के लिये पंडित शब्द का उपयोग किया जाता था। वह 1863 तक अध्यापन का काम करते रहे। (ये ब्लॉ़ग घसेरी डॉट ब्लॉगस्पॉट से लिया गया है, जिसके लेखक धर्मेंद्र पंत हैं)