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देवभूमि के मुक्तेश्वर महादेव, जिंदगी में एक बार आप यहां जरूर आएंगे...शिव खुद बुलाएंगे

Jun 16 2018 1:48AM, Writer:आदिशा

उत्तराखंड में कुछ धाम ऐसे हैं, जिनका इतिहास क्या है ये कोई नहीं जानता। सदियों से पहले भी कई सदियां बीती होंगी और ये धाम वैसे के वैसे हैं। इसी कड़ी में एक धाम है, जिसका नाम है ‘मुक्तेश्वर महादेव’। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि आप यहां ना आएं, ये हो नहीं सकता, क्योंकि महादेव खुद आपकी हाजिरी लगवाते हैं। आज तक यहां आने वाले कई श्रद्धालुओं को खुद नहीं पता कि बिना किसी वजह के यहां तक वो कैसे पहुंच गए। कहा जाता है कि मुक्तेश्वर मुक्ति का धाम है यानी सांसारिक दुख, सुख, लोभ, छल, ब्याधि हर बात से मुक्ति। दुनिया भर से यहां सैलानी आते हैं और कई लोगों को यहां आने वजह पता नहीं रहती। इसे देवभूमि की शक्ति नहीं तो और क्या कहेंगे ? देवदार, बांज, खारसु, तिलोंज, कफल, पाइन, यूटीस और मेहल के सुंदर वनों से घिरा है मुक्तेश्वर मंदिर।

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समुद्र तल से 7500 फीट की ऊँचाई पर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित इस मंदिर की पूजा अर्चना ब्रिटिश भी करते थे। अंग्रेजों के राज में इस मंदिर को सजाया गया और संवारा गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें भी यहां कुछ अजीब की ताकत महसूस हुई थी। ब्रिटिश दौर में विकसित इस खूबसूरत धाम को मुक्ति के ईश्वर” भगवान शिव का घर कहा जाता है। इसके प्रमाण 10वीं सदी के मिलते हैं। कहा जाता है कि 10 वी सदी पूर्व कत्यूरी राजाओं द्वारा एक भव्य मंदिर बनाया गया था। मुक्तेश्वर मंदिर के पास ही स्थित है चौथी जाली या चौली की जाली। ये मान्यता है कि यदि शिवरात्रि के दिन संतान सुख की कामना के साथ कोई महिला इस पत्थर पर बने छेद को पार करती है तो उसे अवश्य ही संतान सुख मिलता है। ये एक गजब की जगह है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ देवी और राक्षस के बीच एक युद्ध हुआ था। एक ढाल, हाथी की सूंड और तलवार की एक हल्की रेखा आज भी यहां देखी जा सकती है।

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मुक्तेश्वर का नाम दो संस्कृत शब्द से निकला है “मुक्ति और ईश्वर से”। ‘मुक्ति’ का मतलब “शाश्वत जीवन” और ‘ईश्वर’ का अर्थ है भगवान। मुक्तेश्वर के बारे में एक प्राचीन कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव के साथ एक राक्षस का युद्ध होता है। ये युद्ध कई दिनों तक चलता है। बाद में दानव पराजित होता है तो भगवान शिव से याचना करता है। भगवान शिव को भोले नाम दिया गया है और उसी के मुताबिक उन्होंने काम किया। कहा जाता है कि उन्होंने राक्षस को अमरता का वरदान तो दिया दिया लेकिन सिर्फ आत्मा को। शरीर को वो पहले ही मुक्त कर चुके थे। कहा जाता है कि 10 वीं सदी में इस मंदिर को कत्यूरी राजाओं ने सिर्फ एक रात में ही तैयार किया था।


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