उत्तराखंड शहीद..कश्मीर के लालचौक पर आतंकी सरगना को मारा, फिर खुद भी चला गया
Jul 18 2018 11:51PM, Writer:कपिल
क्या कहें और कितनी कहानियां बताएं ? उत्तराखंड की मिट्टी है ही ऐसी कि एक बार सजदा करेंगे तो मातृभूमि के लिए प्यार जागता है। कितने वीर, कितने सपूतों ने इस धरती पर जन्म लिया और अदम्य साहस की कहानियां लिख गए। राज्य समीक्षा की कोशिश रहती है कि आपके बीच उन वीरों की कहानियां लेकर आएं, जिनका आपसे वास्ता है। ऐसे ही एक वीर थे कोटद्वार की धरती के लाल असिस्टेंट कमांडेंट मुकेश बिष्ट। क्या आप जानते हैं कि मुकेश बिष्ट के नाम पर राजस्थान के श्रीगंगानगर में मौजूद बीएसएफ के बटालियन मुख्यालय में सड़क बनाई गई है? क्या आप जानते हैं कि कोटद्वार में हर साल मुकेश बिष्ट के नाम पर क्रिकेट और फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित होता है ? क्या आप जानते हैं कि कोटद्वार में गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी बनाई गई है और वो भी शहीद मुकेश बिष्ट के नाम पर ही है। आखिर ऐसा क्या कर के गए थे मुकेश बिष्ट ? जरा ये भी जान लीजिए।
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एक फरवरी 2001 को जम्मू-कश्मीर के लाल चौक पर मुकेश अपने दो सहयोगियों के साथ पेट्रोलिंग पर थे। इसी दौरान उन्हें तीन आतंकी नजर आए। मुकेश ने तीनों आतंकियों को ललकारा और इस बीच तीनों आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली मुकेश के सिर के आर पार निकल गई थी। लेकिन जीवटता देखिए। मुकेश ने होश नहीं खोया और आतंकियों के सरगना को मौके पर ढेर कर दिया। जिस आतंकी को मुकेश ने मारा था, वो संसद हमले के मुख्य साजिशकर्ता ग़ाजी बाबा का राइट हैंड था। पहले मुकेश बिष्ट ने खून से लथपथ काया में बंदूक उठाने को जज्बा दिखाया और उसके बाद मोस्ट वॉन्टेड आतंकी को मौके पर ही ढेर कर दिया। मुकेश के शहीद होने की खबर मिलते ही उनकी मां डॉ. देवेश्वरी बिष्ट पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। 1997 में ही मुकेश के पिताजी इस दुनिया से चल बसे थे। लेकिन जब आप और भी बातें जानेंगे तो उस मां के जज्बे को भी सलाम करेंगे।
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पति के बाद बेटे की मौत के गम से डॉ. देवेश्वरी बिष्ट ने खुद को संभाला। मुकेश की यादों को जिंदा रखने के लिए उनकी मां की तरफ से एक बेमिसाल कोशिश की गई। शहीद मुकेश की याद में हर साल राज्यस्तरीय फुटबाल टूर्नामेंट का आयोजन करवाया जाता है। हर साल क्रिकेट प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं। शहीद मुकेश के नाम पर ही कोटद्वार के विद्यालयों के मेधावी छात्र-छात्राओं को सालाना छात्रवृत्ति दी जाती है। शहीद मुकेश के नाम पर एक पुस्तकालय की भी स्थापना की गई है। इस पुस्तकालय में गरीब बच्चों के पढ़ने के लिए हर साल नई किताबें लाई जाती हैं। उत्तराखंड का ये सपूत आज हर दिल में जिंदा है और इसके लिए उस वीर मां को भी सलाम, जिसने अपने कलेजे के टुकड़े की यादों को संजोने के लिए हर महान पहल की।