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बदरीनाथ की आरती का राज़ खुलेगा, किसी मौलाना ने नहीं बल्कि एक पहाड़ी ने लिखी ये आरती

Aug 3 2018 1:15PM, Writer:कपिल

राज्य समीक्षा ने हर बार आप तक सच्ची खबरें पहुंचाने की कोशिश की है। सच की पड़ताल करते हुए हमने हर बार आपको ये बताने की कोशिश की है कि पहाड़ के लोगों कैसे महान काम किए हैं। हाल ही में हमने आपको एक खबर बताई थी। हमने आपको सबसे पहले बताया था कि बदरीनाथ जी की आरती किसी मौलाना बदरुद्दीन शाह ने नहीं लिखी, बल्कि पहाड़ के एक महान विद्वान ठाकुर धनसिंह बर्तवाल जी ने लिखी थी। इस खबर का असर ये हुआ है कि आज देश के बड़े बड़े अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से जगह दी है। यहां तक कि उनकी ओर से लिखी गई पांडुलिपि की प्रति पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर को भेजी गई है। इसके अलावा इस पांडुलिपि की प्रतिलिपि उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉक्टर एमपीएस बिष्ट के पास भी पहुच गई है।

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सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर का कहना है कि सबसे पहले पांडुलिपि को डिजिटाइज किया जाएगा। इस तरह से इस पांडुलिपि को सुरक्षित रखा जा सकेगा। इस पांडुलिपि की कार्बन डेटिंग कराकर इसकी रचना की अवधि जानी जाएगी। सचिव पर्यटन का कहना है कि रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल को पांडुलिपि की मूल प्रति प्राप्त करने के निर्देश दिए जाएंगे। उनका कहना है कि अगर धन सिंह बर्तवाल जी की पांडुलिपि सबसे पहली और पाई गई तो इतिहास के लिए ये बड़ी उपलब्धि होगी। आप पांडुलिपि की ये कॉपी भी देख लीजिए, जो हमने सबसे पहले दिखाई थी।



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आपको बता दें कि बदरीनाथ जी की आरती ‘पवन मंद सुगंध शीतल’ के रचयिता ठाकुर धनसिंह बर्तवाल थे। 1881 में स्वर्गीय ठाकुर धनसिंह बर्त्वाल ने इस आरती को लिखा था और इसकी पांडुलिपि आज भी मौजूद है। रुद्रप्रयाग जिले में तल्ला नागपुर पट्टी के सतेरा स्यूपुरी के विजरवाणा के रहने वाले स्वर्गीय ठाकुर धनसिंह बर्त्वाल ने ये आरती लिखी थी। जो पांडुलिपि हम आपको दिखा रहे हैं इस पाण्डुलिपि के अंत में लिखी सूचना के मुताबिक ये माघ माह 10 गते (सन् 1881) को स्व0 ठाकुर धनसिंह बर्त्वाल द्वारा लिखी गयी है। इस पाण्डुलिपि की मुख्य विशेषता ये है कि वर्तमान आरती का प्रथम पद यानी ‘’पवन मंद सुगन्ध शीतल" इस आरती का पांचवा पद है। पाण्डुलिपि में गढ़वाली भाषा के शब्दों का प्रयोग भी है। जैसे कौतुक के स्थान पर कौथिग, पवन के स्थान पर पौन और सिद्ध मुनिजन के स्थान पर सकल मुनिजन अंकित है।


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