बदरीनाथ में इस वजह से शंख नहीं बजता, देवभूमि की मां कूष्मांडा से जुड़ा है ये सच!
Aug 8 2018 11:25PM, Writer:कपिल
अगर आप उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लॉक में पड़ने वाले कुमड़ी गांव जाएंगे, तो यहां आपको मां कूष्मांडा के एक भव्य मंदिर के दर्शन होंगे। कहा जाता है कि ये ही वो मंदिर है, जिसकी शक्तियों की वजह से बदरीनाथ में शंख नहीं बजता। आपने शायद इस बात पर कभी गौर ना की हो, लेकिन बदरीनाथ में कभी भी शंख नहीं बजता। अब सवाल ये है कि आखिर अतीत में ऐसा क्या हुआ था कि बदरीनाथ में शंख बजना बंद हो गया ? जन श्रुतियो और लोक कथाओं पर अगर आप नज़र डालेंगे तो दो जगहों की बात होती है। पहला है कुमड़ी गांव का कूष्मांडा मंदिर और दूसरा है रुद्रप्रयाग के ही सिल्ला गांव का शाणेश्वर मंदिर। कहा जाता है कि शाणेश्वर मंदिर में आतापी और वातापी नाम के दैत्यों ने तहलका मचा दिया था। कहा जाता है कि ये दैत्य नरभक्षी हुआ करते थे।
यह भी पढें - देवभूमि में मां सरस्वती का घर, जहां आज भी मुख की आकृति बनाकर बहती है नदी
जो भी पुजारी मन्दिर में पूजा करने जाता, ये दैत्य उसको अपना निवाला बना देते थे। जब शाणेश्वर मंदिर में आखिरी पुजारी बचा तो उसी दौरान देवी मां के उपासक महर्षि अगस्त्य इस जगह पर आए थे। महर्षि अगस्त्य को जब इस बारे में पता चला तो वो खुद हैरान रह गए। उन्होंने प्रण लिया कि वो आतापी और वातापी दैत्यों का नाश करेंगे। इसके लिए महर्षि अगस्त्य ने कहा कि आज वो खुद मंदिर के पुजारी बनकर जाएंगे। जब महर्षि अगस्त्य पूजा करने के बाद वापस आ ही रहे थे, तभी वो दोनों मायावी दैत्य प्रकट हो गये। काफी देर तक महर्षि अपनी शक्तियों से दैत्यों के साथ लड़ते रहे लेकिन कामयाब नहीं पाए। आखिरकार उन्होंने मां भगवती कूष्मांडा को याद किया था। वो अपनी कोख को मलने लगे और उस कूष्मांडा देवी का ध्यान करने लगे जिसने मधु और कैटव जैसे दैत्यों का भी संहार किया था।
यह भी पढें - देवभूमि में जब भगवान नृसिंग की कलाई टूटेगी, तो अपना स्थान बदलेंगे बदरीनाथ !
महर्षि अगस्त्य ने जैसे ही पराशक्ति का ध्यान किया तो मां भगवती कूषमान्डा के दिव्य रूप में प्रकट हो गयी। कहा जाता है कि अपनी मां कूष्मांडा शाणेश्वर में ही आतापी और वातापी दैत्यों पर हावी हो गई। इसके बाद ये दोनों दैत्य भाग गये। इनमें से एक दैत्य बद्रीनाथ धाम में छिप गया। उस वक्त से लेकर अाज तक बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजता। मान्यता है कि शंख बजाने से ही वो मायावी दैत्य फिर जागेगा। दूसरा दैत्य वातापी सिल्ली की नदी में छिप गया। कूष्मांडा मंदिर में मां भगवती आज भी साक्षात रूप में विराजती हैं। जो भी भक्त यहां सच्चे मन से मां की आराधना करता है, उसे मनचाहा वरदान मिलता है। मां अपने भक्तों को कभी भी खाली हाथ नहीं जाने देती। खैर अगर आप अब तक कुमड़ी गांव नहीं गए हैं, तो एक बार जरूर जाएं...आपको असीम शांति मिलेगी।