पहाड़ के एक सरकारी स्कूल ने बदली लोगों की सोच, पलायन करने वाले भी वापस लौटे
Sep 6 2018 10:27AM, Writer:आदिशा
तेरे सीने में नहीं, तो मेरे सीने में सही...हो कहीं भी आग बस ये आग जलनी चाहिए..मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। आज पहाड़ में कई सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जिनकी तरफ कोई देखना तक नहीं चाहता। लेकिन इसी बीच कुछ सरकारी स्कूल ऐसे भी हैं, जहां छात्रों की संख्या दिन दोगुनी और रात चौगुनी बढ़ रही है। आज हम आपको एक ऐसे ही स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं। कहने को तो ये सिर्फ एक प्राथमिक स्कूल है.. एक सरकारी प्राथमिक स्कूल। अगर आज पहाड़ में कोई स्कूल सबसे बुरे हाल में हैं, तो वो हैं सरकारी प्राथमिक स्कूल। सरकार की अनदेखी के साथ साथ खुद शिक्षकों की अनदेखी ने भी इन स्कूलों को बर्बाद कर दिया है। माता-पिता तो अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भर्ती कराने के बारे में सोचते तक नहीं। इसी मायूसी के बीचे खुशी देता है चमोली जिले की निजमुला घाटी का प्राथमिक विद्यालय मानुरा।
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एक शिक्षक ने इस स्कूल को खूबसूरत शक्ल देने की ऐसी कोशिश की है कि यहां पलायन करने वाले भी वापस लौट आए। विक्रम सिंह झिंक्वाण की मेहनत का लोहा सरकार ने भी माना और इस वजह से उनका चयन गवर्नेंस अवॉर्ड के लिए हुआ है। चमोली जिले के इस विद्यालय तक जाने के लिए बिरही से ब्यारा गांव तक सड़क मार्ग है। यहीं से दो किलोमीटर की पैदल चढ़ाई है और इसके बाद आता है प्राथमिक विद्यालय मानुरा। एक दशक पहले इस स्कूल की हालत बेहद खराब थी।स्कूल की इतनी खराब हालत और शिक्षा का इतना बुरा स्तार था कि छात्रों की संख्या महज 3-4 के करीब रह गई थी। साल 2009 में विक्रम सिंह झिंक्वाण की तैनाती इस विद्यालय में हुई। उन्होंने स्कूल की हालत देखकर ही समझ लिया कि आखिर क्यों यहां बच्चे नहीं हैं।
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उन्होंने संकल्प लिया कि वो इस स्कूल की हालत बदलेंगे। नौ साल की कड़ी मेहनत के बाद जाकर इस स्कूल का कायाकल्प हो गया। फिलहाल विद्यालय में 30 छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं। शिक्षा की गुणवत्ता ऐसी है कि कई प्राइवेट स्कूल भी मात खा रहे हैं। यहां के बच्चे शिक्षा, खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियों में निज़ी स्कूलों के बच्चों को पीछे छोड़ रहे हैं। स्कूल में स्वच्छता और हरियाली को देखकर ही आप खुश हो जाएंगे। यहां छात्र-छात्राओं और शिक्षकों की दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा है अनुशासन। पढ़ाई के मामले में ये बच्चे किसी से कम नहीं। सामान्य ज्ञान, हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी में भी मजबूत पकड़ रखते हैं। विक्रम सिंह झिंक्वाण जैसे शिक्षकों की वजह से पहाड़ में उम्मीदें जिंदा हैं। सलाम ऐसे शिक्षकों को, जो जानते हैं कि शिक्षा ही पलायन का सबसे बड़ा तोड़ है।