उत्तराखंड के पूरन भट्ट..शहर छोड़कर गांव लौटे, खेती और मधुमक्खी पालन से अच्छी कमाई
पूरन भट्ट दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा जैसे शहरों में पंडिताई करते थे। लॉकडाउन के चलते पंडिताई छूटी तो पूरन भट्ट ने दिल्ली भी छोड़ दी और गांव लौटकर अपने बंजर खेतों को संवारने लगे। आगे पढ़िए पूरी खबर
Aug 10 2020 4:54PM, Writer:Komal Negi
आपदा को अवसर में कैसे बदलना है, ये बात पहाड़ियों से बेहतर भला कौन समझ सकता है। पहाड़ की जिंदगी चुनौतियों से भरी है। यहां रहने वाले लोग ना सिर्फ पहाड़ पर, बल्कि इन चुनौतियों पर जीत हासिल का हुनर भी खूब जानते हैं। अब अल्मोड़ा के पूरन भट्ट को ही देख लें। जो सूर्यमुखी की खेती और मौन पालन कर स्वरोजगार से सफलता की मिसाल बन गए हैं। लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रवासियों की तरह गांव लौटने वाले पूरन भट्ट ने हाथ पर हाथ धरे बैठने की बजाय अपने बंजर खेतों को संवारना शुरू किया। उन्होंने खेत में सूर्यमुखी के बीज बोये। महीने भर में ही खेतों में फूल खिल आए। इसी के साथ उन्होंने मौन पालन के लिए खेत में मधुमक्खियों के लिए डिब्बे रखे। योजना काम कर गई। अगस्त के पहले हफ्ते में उन्होंने 2 किलो शहद हासिल किया। इस शहद को दिल्ली में बेचा जाएगा।
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सल्ट ब्लॉक क्षेत्र के कुणीधार में रहने वाले पूरन भट्ट दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा जैसे शहरों में पंडिताई करते थे। 20 साल से वो अलग-अलग शहरों में धार्मिक अनुष्ठान कर रहे थे। यही उनकी आजीविका का एकलौता सहारा था, लेकिन लॉकडाउन ने उनसे ये सहारा भी छीन लिया। उनकी जगह कोई और होता तो कोरोना को कोसते-कोसते डिप्रेशन में चला जाता, लेकिन पूरन हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने अपना हौसला टूटने नहीं दिया। पंडिताई छूटी तो पूरन भट्ट ने दिल्ली भी छोड़ दी और दूसरे प्रवासियों की तरह अपने गांव लौट आए। पूरन भट्ट भी चाहते तो हाथ पर हाथ धरे स्थिति के बेहतर होने का इंतजार कर सकते थे, लेकिन उन्होंने दूसरा विकल्प चुना। लॉकडाउन में अल्मोड़ा लौटने के बाद वो 14 दिन के लिए क्वारेंटीन रहे। इस दौरान उन्होंने बेहतर भविष्य के लिए प्लानिंग की।
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क्वारेंटीन पीरियड खत्म होने के बाद वो गांव लौटे और अपने बंजर खेत संवारने लगे। उन्होंने खेत में सूर्यमुखी के बीज बोए। महीनेभर में ही पौधों में फूल खिल गए। मौन पालन से भी उन्हें काफी फायदा हुआ। अब पूरन भट्ट पर्वतीय जैविक उत्पाद के रूप में सूर्यमुखी के बीज और शहद दिल्ली पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। उनका अगला लक्ष्य सूर्यमुखी के बीज से तेल निकालना है। साथ में वो मौनपालन से नई शुरुआत करना चाहते हैं। पूरन भट्ट कहते हैं कि तिलहनी फसल के बीज 200 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं। तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है। सूर्यमुखी की फसल साल में तीन बार तैयार की जा सकती है, इसलिए उन्होंने स्वरोजगार के तौर पर इसे आजीविका का जरिया बनाया। अब वो सूर्यमुखी से तेल उत्पादन की योजना बना रहे हैं। जिसे दिल्ली में बेचा जाएगा।