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केदारनाथ में महामारी न फैल जाए, 16 दिन में 60 खच्चरों की मौत..बेजुबानों पर ऐसा जुल्म क्यों?

पैसों के लालच में बेजुबान जानवरों पर अत्याचार क्यों? क्या घोड़े-खच्चरों की जान की कोई कीमत नहीं? केदारनाथ में 16 दिन में 60 घोड़े-खच्चरों की मौत।
May 27 2022 5:39PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

जानवर बेजुबान होते हैं, उनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती, मगर जान उनमें भी होती है, थकान उनको भी होती है। जैसे इंसानों के काम करने की क्षमता होती है ठीक वैसे ही जानवरों की भी होती है।

60 horses mule killed in Kedarnath

मगर यह कितनी शर्म की बात है कि केदारनाथ में घोड़े और खच्चरों के साथ किस तरह का बर्ताव हो रहा है। दो पैसे ज्यादा कमाने के लिए वहां उन मासूम जानवरों पर अत्याचार हो रहा है। उनको रोज़ के 3-4 चक्कर लगवाए जा रहे हैं। पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है। यह सोचकर ही रूह कांप जाती है कि केदारनाथ में श्रद्धालुओं की सुख सुविधाओं का तो पूरा ख्याल रखा गया है मगर बेजुबान जानवरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? आंकड़ों के मुताबिक अब तक 1 लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोडे़-खच्चरों से बाबा के धाम की यात्रा कर चुके हैं। पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चरों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है। केदारनाथ यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़े-खच्चरों की ही कोई कद्र नहीं की जा रही है। उनकी जान की कीमत नहीं है। इनके लिए न रहने की कोई समुचित व्यवस्था है और न ही इनके मरने के बाद विधिवत दाह संस्कार किया जा रहा है। प्रशासन, शासन, पुलिस व्यवस्था इन सबका क्या फायदा जब भगवान शिव के निवास पर इस कदर जानवरों के साथ में ज्यादती हो। शर्मनाक यह है कि केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद मालिक और हॉकर उन्हें वहीं पर फेंक रहे हैं, जो सीधे मंदाकिनी नदी में गिरकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसे में केदारनाथ क्षेत्र में महामारी फैलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

समुद्रतल से 11750 फिट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तक पहुंचने के लिए बाबा केदार के भक्तों को 18 से 20 किमी की दूरी तय करनी होती है। इस दूरी में यात्री को धाम पहुंचाने में घोड़ा-खच्चर अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन इन जानवरों के लिए भरपेट चना, भूसा और गर्म पानी भी नहीं मिल पा रहा है। तमाम दावों के बावजूद पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चर के लिए गर्म पानी नहीं है। दूसरी तरफ, संचालक और हॉकर रुपये कमाने के लिए घोड़ा-खच्चरों से एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ के 2 से 3 चक्कर लगवा रहे हैं और रास्ते में उन्हें पलभर भी आराम नहीं मिल पा रहा है, जिस कारण वह थकान से चूर-चूर होकर दर्दनाक मौत का शिकार हो रहे हैं। आंकड़े देख कर न तो सरकार को, न ही प्रशासन को कोई फर्क पड़ता है। आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि केदारनाथ की रीढ़ कहे जाने वाले इस जानवर की कितनी सुध ली जा रही है। सिर्फ 16 दिनों में 55 घोड़ा-खच्चरों की पेट में तेज दर्द उठने से मौत हो चुकी है, जबकि 4 घोड़ा-खच्चरों की गिरने से और एक की पत्थर की चपेट में आने से मौत हुई है। बावजूद इसके घोड़े-खच्चरों की सुध नहीं ली जा रही है। हमारी अपील है, सरकार से, प्रशासन से, अधिकारियों से, पुलिस से, जानवरों के दर्द को अनदेखा न किया जाए और उनके लिए धाम में खाने-पीने, रहने की व्यवस्था की जाए।


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