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उत्तराखंड के ‘गिर्दा’ की वो बेमिसाल कविता, जो जोशीमठ के हालातों पर फिट बैठती है..देखिए वीडियो

महान कवि गिरीश चन्द्र तिवारी की ये कविता बता रही है कि संभल जाइए…अभी भी वक्त है..देखिए वीडियो
Jan 10 2023 2:32AM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क

जोशीमठ…पल पल दरकता, टूटता…शायद आखिरी सांसे गिनता जोशीमठ। वो लोग जिन्होंने यहां घर बनाए थे, वहां खतरे के लाल निशान गवाही दे रहे हैं कि आखिरी वक्त आ गया है।

Joshimath sinking latest update

घर को अलविदा कहने का समय आ गया है। जोशीमठ का ये हाल कैसे हुआ? वैज्ञानिकों ने कई बार चेतावनी दी, संतों साधुओं ने भी चेताया, यहां तक कि जनकवियों ने भी अपनी कविता के माध्यम से आने वाले विभीषिका का संकेत पहले ही दे दिया था। आज उत्तराखंड के उस महान गीतकार की कविता सुन लीजिए, जिसने अपने शब्दों के माध्यम से भविष्य के गर्भ में छुपे सत्य को उजागर कर दिया था। इस अद्भुत गीतकार, लेखक, जनकवि ने कभी उत्तराखंड मेरी मातृ-भूमि गाकर जनता के दिलों में ऐसा ज्वार जगाया कि अलग उत्तराखंड की मांग ने जोर पकड़ा। तो बोल व्यापारी कहकर भविष्य में होने वाले प्रलय के संकेत दिया था। आगे देखिए वीडियो

Girish chandra tiwari girda poem vyapari

अल्मोड़ा के हवालबाग में जन्मे महान कवि गिरीश चंद्र तिवारी ने कभी लिखा था।
एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है सूखी नदियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनिया- एक तरफ हो तुम।
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्यापारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलेगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जायेंगे, खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब, बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी-तब क्या होगा??
आज भले ही मौज उड़ा लो, नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो
लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
विश्व बैंक के टोकन धारी-तब क्या होगा?
योजनाकारी-तब क्या होगा?नगद-उधारी तब क्या होगा?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ-एक तरफ हो तुम। एक तरफ है प्यासी दुनिया-एक तरफ हो तुम।
डूबता जोशीमठ भी इन्ही शब्दों के बुने ताने-बाने का एक हिस्सा है। महान कवि गिरीश चन्द्र तिवारी की ये कविता बता रही है कि संभल जाइए…अभी भी वक्त है, जब प्रलय आएगी, तो सब तबाह हो जाएगा , सभ्यता का नाश हो जाएगा। देखिए वीडियो

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