image: Havaldar Gajendra Singh photo found in Moscow museum

उत्तराखंड के वीर सपूत को रूस ने दिया सम्मान, मास्को के म्यूजियम में लगी तस्वीर

उत्तराखंड के जांबाजों ने सेना में अपनी बहादुरी की वीरगाथा स्वर्ण अक्षरों से लिखी है। इन्हीं जांबाजों में से एक हैं हवलदार गजेंद्र सिंह, जिन्हें साल 1944 में सोवियत रूस ने 'ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार' से सम्मानित किया था...
Jul 1 2020 7:07PM, Writer:कोमल नेगी

उत्तराखंड के सैनिकों के शौर्य की कहानियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं। यहां के लोगों की देशभक्ति का कोई जवाब नहीं। सेना में बहादुरी दिखाने के मामले में उत्तराखंड का बड़ा नाम है। जब भी कोई युद्ध हुआ है, तभी उत्तराखंड के जवानों ने अपनी जांबाजी से मिसाल कायम की है। वीरता के इतिहास में उत्तराखंड जैसे कम जनसंख्या घनत्व वाले राज्य का बड़ा नाम है। विक्टोरिया क्रॉस विजेता सूबेदार मेजर दरबान सिंह हों, ऑनरेरी कैप्टन गजे सिंह घले, राइफलमैन गबर सिंह या फिर परमवीर चक्र विजेता ले. जनरल डीएस थापा, ये सभी हमारे सच्चे हीरो हैं। इन्हीं सच्चे हीरोज में से एक हैं भारतीय हवलदार गजेंद्र सिंह, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में उनकी बहादुरी के लिए साल 1944 में सोवियत रूस ने 'ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार' से सम्मानित किया था। उत्तराखंड के इस जांबाज सपूत को रूस में एक और बड़ा सम्मान मिला है। मास्को में रूसी सेना ने अपने म्यूजियम में भारतीय हवलदार गजेंद्र सिंह की तस्वीर लगाकर इस वीर सैनिक की के योगदान को सलाम किया। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गांव बडालू के रहने वाले थे हवलदार गजेन्द्र सिंह

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड में आज जारी होगी अनलॉक-2 के लिए गाइडलाइन, मिल सकती हैं ये छूट
साल 1944 में सोवियत रूस ने गजेंद्र सिंह के अलावा तमिलनाडु के सूबेदार नारायण राव को भी 'ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार' सम्मान से नवाजा गया था। मॉस्को में भारतीय दूतावास ने मृत सैनिकों के परिवार को पिछले हफ्ते फेलिशिटेशन के बारे में जानकारी दी थी। रूस में भारतीय राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा ने इस संबंध गजेंद्र सिंह के परिवार को एक लेटर भेजा था। जिसमें रूसी सशस्त्र बल संग्रहालय में गजेंद्र सिंह का नाम शामिल करने की बात लिखी थी। उत्तराखंड के जांबाज को रूस में सम्मान मिलना प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है। हवलदार गजेंद्र सिंह का परिवार पिथौरागढ़ मे रहता है। उनके बेटे भगवान सिंह बताते हैं कि गजेंद्र सिंह साल 1936 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में शामिल हुए थे। ट्रेनिंग के बाद उनकी पोस्टिंग रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कॉर्प्स में हुई। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय उनके पिता की पोस्टिंग ईराक के बसरा में थी। गठबंधन वाली सेना ने उन्हें कठिन इलाकों में गोला-बारूद, हथियार और राशन ले जाने के लिए तैनात किया था।

यह भी पढ़ें - देहरादून में आज से खुले मॉल, रेस्टोरेंट और धार्मिक स्थल..जानिए क्या क्या रहेगा बंद
पिता की वीरता के किस्से सुनाते हुए आज भी भगवान सिंह की आंखों में चमक आ जाती है। वो बताते हैं कि साल 1943 में एक रात जब उनके पिता ड्यूटी पर थे, तब उन पर दुश्मनों ने हमला कर दिया था। हमले में हवलदार गजेंद्र सिंह बुरी तरह घायल हो गए थे। सेना के डॉक्टरों ने उनसे भारत जाने को कहा, लेकिन गजेंद्र सिंह ने कहा कि वो वहीं रहना चाहते हैं। ठीक होने के बाद वो फिर से अपनी बटालियन में शामिल हो गए। उन्होंने सोवियत सैनिकों को हथियार और रसद आपूर्ति जारी रखी। युद्ध जैसी विषम परिस्थितियों में गजेंद्र सिंह ने रूसी सेना के लिए जो किया, उसके लिए इस भारतीय सिपाही को आज भी याद किया जाता है। सोवियत सेना ने उन्हें जुलाई 1944 में 'ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार' से सम्मानित किया था। अब उनकी तस्वीर रूसी सेना के म्यूजियम में लगाई गई है।


View More Latest Uttarakhand News
View More Trending News
  • More News...

News Home